बक्सर खबर। बिहार में चुनाव जाति के आधार पर होता है। यह बात किसी से छिपी नहीं है। लेकिन, इस बार के चुनाव में यह सुनने को मिल रहा है। बिहार के लोग जाति पर वोट नहीं करते। लेकिन, यह पुरी तरह सच नहीं है। जिले के चुनाव परिणाम पर नजर डाले तो सच कुछ और ही बयां करता है। साथ ही यह संदेश देता है। अगर आपका लक्ष्य बड़ा हो तो सोच भी बड़ी रखनी होगी। जैसे एक तरफ जातीय गोलबंदी थी। दूसरी तरफ जमात की ताकत। नतीजा सामने है। लड़ाई जोरदार हुई बावजूद इसके जीत भी शानदार हुई। अर्थात जाति को जमात ने करारी शिकस्त दी।
रही बात जातीय गोलंबी की तो हम पिछले चुनाव पर नजर डालते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 3 लाख 19 हजार 12 मत मिले थे। राजद को 1 लाख 86, 674 मत मिले थे। उस समय बसपा से चुनाव लड़े ददन यादव को 1 लाख 84,788 मत मिले थे। जदयू से चुनाव लड़े श्यामलाल कुशवाहा को 1 लाख 17, 012 मत मिले थे। इस बार के चुनाव में कुछ नए मतदाता जुड़े। लेकिन, मतदान का प्रतिशत लगभग वही रहा। ददन चुनाव मैदान से हट गए। जदयू भाजपा के साथ चली गई। नतीजा ददन के साथ रहने वाला यादव वोट राजद के पास वापस लौट गया। बसपा का वोट अपनी पार्टी में वापस। तभी तो इस बार के चुनाव में बसपा को 80 हजार मत मिले। वहीं एक लाख मतों की वापसी से राजद आंकड़ा 1,86 से बढ़कर साढ़े तीन लाख तक पहुंच गया। हालाकि इसमें उपेन्द्र कुशवाह, जीन माझी और कांग्रेस के मत भी शामिल हैं।
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वहीं दूसरी तरफ जदयू के मतदाता भी वापस भाजपा के पाले लौट गए। नतीजा 2014 में 3 लाख 19 हजार मत लाने वाली भाजपा ने इस बार 4 लाख 68 हजार(इसमें पोस्टल बैलेट से प्राप्त मत शामिल नहीं हैं) के आंकड़े को पार कर गई। यहां जातीय खेल का एक और जाता उदाहरण हैं। जनतांत्रिक विकास पार्टी के प्राप्त मत। छोटे दलों में चुनाव के दौरान सबसे अधिक परिश्रम करने वाले अनिल कुमार को 9756 मत मिले। वहीं दूसरी तरफ सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के उम्मीदवार उदय कुमार राय को जाति के नाम पर 14170 मत प्राप्त हुए। इस दल की सामाजिक भागीदारी कितनी है। यह सभी लोग जानते हैं।लेकिन जाति के नाम पर वह आगे रहा। खबर देने का तात्पर्य यह है कि मौजूदा वक्त में कुछ पार्टियां लोगों को जाति के नाम पर बांट रहीं हैं। दो दशक पहले तक हिंदू-मुस्लिम की बात होती थी। धीरे-धीरे यह घाव समाज में विकृति पैदा कर रहा है। इससे बचने की जरुरत है। और ऐसे लोगों को मुंहतोड़ जवाब देने की। अगर समय रहते हमने चेता नहीं तो आने वाली नश्ले एक दूसरे के खिलाफ खड़ी नजर आएंगी। जो गांव, समाज और पूरे राष्ट्र के लिए घातक होगा।
ये बिल्कुल गलत है
सरासर गलत है
क्या राजपूत , ब्राभन , बनिया , पासवान , भाजपा को नही दिए है
कहा जातिवाद खत्म हुआ है
जाती तो है ही