बक्सर खबर : पत्रकारिता का सच बहुत कड़वा है। मैंने जो देखा है और जिया है। वह इस बात का गवाह। यहां चापलूस लोगों की पूछ है। हालाकि हर जगह ऐसा नहीं है। कुछ सच्चे और ईमानदार लोग भी हैं। लेकिन उनके उपर सबकी नजर टेढ़ी रहती है। आस-पास वाले हमेशा खतरा महसूस करते हैं। मेरा पत्रकारिता जीवन बहुत लंबा नहीं है। बावजूद इसके एक दशक का समय गुजर गया। एक बैनर का साथ तो इस लिए छूट गया। वहां के प्रभारी ने कहा मुझे चावल चाहिए। दो चार किलो नहीं क्विंटल में। मैंने कहा रुपया व गाड़ी भेज दीजिए। चावल पहुंच जाएगा। इतना सहयोग तो मैं आपके लिए कर दूंगा।
लेकिन साहब ने कहा आप इतने बड़े बैनर में काम कर रहे हैं। इतनी पकड़ नहीं की दो क्विंटल चावल भेज सकें। मैंने कहा जी नहीं। बस क्या था लगे प्रताडि़त करने। भेजी खबरें छटने लगी। मैंने वैसे लोगों से स्वयं किनारा कर लिया। ऐसे भ्रष्ट लोग आज भी अखबार चला रहे हैं। जो मीडिया के लिए स्वयं अभिशाप हैं। यह उदगार है त्रिलोकी चौबे का। जो फिलहाल प्रभात खबर के पत्रकार हैं। नावानगर से संवाददाता के रुप में प्रभात खबर की सेवा कर रहे हैं। बक्सर खबर ने अपने साप्ताहिक कालम इनसे मिलिए के लिए बात की। उनसे हुई बातचीत के आधार पर प्रस्तुत है उनका संक्षिप्त परिचय।
पत्रकारिता जीवन
बक्सर : त्रिलोकी का जीवन बहुत ही संघर्ष मय रहा है। बचपन में ही पिता का साथ छूट गया। वे झारखंड चले गए। एक कंपनी में एकाउटेंट की नौकरी करने लगे। घर में दादी और मां रहती थी। दादी का देहांत हो गया। त्रिलोकी को वापस गांव आना पड़ा। यहां आए तो प्रभात खबर के लिए काम करना शुरु किया। वर्ष 2005 की बात है। अभी कुछ माह गुजरे थे। दैनिक जागरण के अविनाश से मुलाकात हुई। वे उन्हें जागरण में ले आए। अभी कुल मिलाकर डेढ साल का वक्त गुजरा था। इस बीच जागरण में नए प्रभारी आ गए। उनसे नहीं पटी तो जागरण छूट गया। फिर हिन्दुस्तान के संवाददाता अनिल ओझा ने उन्हें अपने अखबार में आने की सलाह दी। फिर हिन्दुस्तान से जुड़ गए। वर्ष 2007 से 2011 तक इस अखबार के लिए काम किया। इस बीच उप सरपंच बन गए। हिन्दुस्तान से साथ छूट गया। राजनीति का अनुभव लेने के बाद एकबार फिर प्रभात खबर के लिए काम कर रहे हैं।
व्यक्तिगत जीवन
बक्सर : त्रिलोकी बताते हैं। मेरा जन्म 28 अक्टूबर 1974 को हुआ। पिता स्व. परशुराम चौबे 1979 में चल बसे। मां शिक्षक थी। एक पुत्र और दो बेटियों को बड़े ही जतन से उन्होंने पाला। 1990 में सोनवर्षा हाई स्कूल से मैट्रिक व 1995 में जैन कालेज आरा से स्नातक की डिग्री ली। 1996 में पड़ोस के ही गांव मिश्रवलिया में उनकी शादी हो गई। पत्नी घर में आई तो वे नौकरी करने झारखंड चले गए। लेकिन घर की जरुरतों के कारण पुन: वापस लौट आए। अब यहीं के होकर रह गए हैं। त्रिलोकी एक पुत्र और पुत्री के पिता हैं। पत्नी भी शिक्षक हैं। इस लिए घर की गाड़ी आसानी से चल जाती है। इस जिंदगी में बहुत तनाव नहीं है।