पिता बोले थे, बनना ही है तो जज बनो, नहीं तो…

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सिंघनपुरा के शशिकांत को पिता से मिली थी जज बनने की प्रेरणा                                                                           बक्सर खबर। बनना है तो जज बनो नहीं तो खेती करो। शशिकांत के यह पूछने पर कि क्या बनूं पिता ने यही जवाब दिया था। पिता के जवाब को शशिकांत ने अपने दिल पर लिख लिया। अमिट अक्षरों में। और जुट गए तैयारी में। शशि ने तभी सोच लिया था कि अब बनाना है तो जज ही बनना है। दूसरा कुछ भी नहीं। यह बात सन 1992 की है। तब शशि मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास किए थे। आगे कुछ समझ में नहीं आ रहा था तो उन्होंने पिता से पूछा था कि अब क्या करूं?

उन दिनों की याद कर शशि की आंखें नम हो आईं। उन्होंने बताया कि पिता ने उन्हें बड़े सपने देखने के लिए प्रेरित किया। उन सपनों का नतीजा आज सामने है। शशि जज बन चुके हैं। हालांकि उन्हें अफसोस है इस खुशी के मौके पर भी। क्योंकि उन्हें जज के रूप में देखने के लिए उनके पिता जीवित नहीं है। शशि का कहना है कि लक्ष्य बड़ा होना चाहिए। लक्ष्य को हासिल करने की प्रतिबद्धता होनी चाहिए। फिर वह हासिल होना बड़ी बात नहीं है। इस सेवा में आने के पीछे के उद्देश्य के संबंध में उनका कहना है कि निचले स्तर पर लोगों को न्याय नहीं मिल पाता है। हमारा प्रयास ऐसे ही लोगों तक न्याय की पहुंच आसान बनाना है। वह कहते हैं, कठोर सजा से अपराध बंद नहीं होगा। इसके लिए पुलिस व्यवस्था को दुरुस्त करना होगा। सीबीआई और पुलिस की तुलना करते हुए वह कहते हैं कि जहां पुलिस की सफलता रेट दस से बारह फीसदी है वहीं सीबीआई की सफलता का रेट 72 फीसदी के करीब है। इससे पता चलता है कि पुलिस का सिस्टम ठीक नहीं है। हालात में बदलाव के संबंध में उनका कहना है कि पुलिस को दो भागों में बांटना होगा। एक लॉ आर्डर संभाले, दूसरी जांच की जिम्मेदारी संभाले। इससे पुलिस की सफलता का दर बढ़ जाएगा। लोगों को न्याय नहीं मिलने के सवाल पर शशिकांत कहते हैं, न्यायिक सेवा में अधिकारियों की कमी है। इसलिए लोगों को जल्द न्याय नहीं मिल पाता है। उन्होंने बताया कि 1999 के बाद पहली बार सीधी भर्ती के लिए वैकेंसी आई थी। क्षेत्र के युवाओं को संदेश के रूप में वह कहते हैं, परिस्थितियां कितनी भी विपरीत हों, यदि सपने बडे हैं, लगन है उन सपनों में रंग भरने का, तो सफलता अवश्य मिलेगी।

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