बक्सर खबर। आज हम अपने साप्ताहिक कालम यह भी जाने के अंतर्गत आपके सामने लेकर आए हैं जिले के इकलौते संग्रहालय की जानकारी। आपको पता होगा किला के पास सीताराम उपाध्याय संग्रहालय स्थित है। इसकी स्थापना 18 अक्टूबर 1993 को की गई थी। भवन बनने के बाद इसका विधिवत उद्घाटन मई 1996 में किया गया। तत्कालीन निदेशक संग्रहालय बिहार नसीम अख्तर ने किया। बिहार में बहुत कम ही जिले ऐसे हैं जहां ऐसे संग्रहालय हैं। संग्रहालय न केवल अतीत की धरोहर को संभालने के लिए होते हैं बल्कि, वे भविष्य में दिशा-निर्देश देने का भी कार्य करते हैं।
बक्सर में प्रदर्शित सामग्रियों को प्रस्तर कला, मृण्मूर्ति कला, पाण्डुलिपि एवं मुद्रा-प्रभाग में विभाजन किया जा सकता है। प्रस्तर मूर्तियों में जहां ब्रह्मा, विष्णु, महेश, वूषभ देवी, सूर्य आदि की मूर्तियां हैं वहीं इस संग्रहालय में प्राचीनकाल से मध्य काल तक के सिक्के संकलित हैं। अधिकृत जानकारी के अनुसार ग्रीक, शक, गुप्त कालीन और मुगल कालीन सिक्कों के अतिरिक्त आहत सिक्के, जिन्हें भारतीय सभ्यता का प्राचीनतम सिक्का माना जाता है, यहां संकलित हैं। हालाकि पिछले कुछ वर्षो में अनेक मूर्तियों और दूर्लभ वस्तुओं को पटना संग्रहालय भी ले जाया गया है।
इस संग्रहालय में 7 वीं, 8वीं सदी कि ब्रह्मा की मूर्ति, 9 वीं -10 वीं सदी की देवी मूर्ति, 14-15 वीं सदी की हनुमान की मूर्ति तथा उत्तर गुप्तकालीन शिव-वृषभ की मूर्ति है। मिट्टी कला अर्थात मृण्मूर्तियों का अपूर्व संग्रह इस संग्रहालय में है। बक्सर से ही शायद टेरा-कोटा अर्थात मिट्टी कला की शुरूआत हुई थी। संग्रहालय में प्राक मौर्य काल से लेकर कुषाण काल तक की मृण्मूर्तियां संकलित हैं। बक्सर की मृण्मूर्तियां शिरोपरिधान एवं केश विन्यास के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। जो यहां के लोगों के श्रृंगार के प्रति अभिरुचि को प्रमाणित करती हैं। ये मृण्मूर्तियां अपने क्षेत्र एवं काल के धार्मिक एवं सामाजिक जीवन को जीवंत करती हैं। सोहनी पट्टी के रहने वाले श्रीसीताराम उपाध्याय जी के अथक प्रसास के कारण ही यह संग्रहालय अपने अपूर्व संग्रह के लिए कौतूहल का केन्द्र बना हुआ है।