-कभी विदेश से आता था कपास, अब कच्चे धागे का होता है इस्तेमाल
-देश में कहीं भी हो फांसी तो बक्सर से मंगाया जाता है फंदा
बक्सर खबर (यह भी जाने)। देश में जब किसी को फांसी दी जाती है। बक्सर का नाम सुर्खियों में आ जाता है। क्योंकि बक्सर की केन्द्रीय जेल इकलौता स्थान है। जहां फांसी की रस्सी बनायी जाती है। जिसका नाम मनीला रस्सी है। मनीला नाम क्यों पड़ा। इसको लेकर दो तरह की बातें कहीं जाती हैं। सामान्य तौर पर बंदी बताते हैं। इसे मोम लगाकर तैयार किया जाता है। इस लिए इसका नाम मनीला है।
लेकिन, तथ्यात्मक अवलोकन करने पता चलता है। पहले यहां फिलिपीन्स की राजधानी मनीला से विशेष कपास का निर्यात होता था। रस्सी उसी से तैयारी होती थी। जिसके कारण इसका नाम मनीला पड़ा। समय गुजरा तो पंजाब में पैदा होने वाले उन्नत कपास पी 34 से यह रस्सी बनायी जाने लगी। फिलहाल इसका निर्माण कच्चे धागे से होता है। जिसकी आपूर्ति सप्लायर करते हैं। यहां के बंदी उसे से फंदे का निर्माण करते हैं। उसके लिए जेल में अलग स्थान और रस्सी लपेटने के पुराने चरखे मौजूद हैं। धागों में मोम लगाया जाता है। जिससे फांसी के समय फंदा फंसे नहीं।
डेढ़ सौ साल पुराना है रस्सी का इतिहास
बक्सर खबर । बक्सर जेल में बने फांसी के फंदे का इतिहास लगभग डेढ़ सौ साल पुराना है। यहां 1861 में जेल बनायी गयी थी। अंग्रेजों ने इसका निर्माण 1857 की क्रांति के बाद किया था। तीन वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में यह जेल फैली हुई है। जहां कुछ फैक्ट्रियां भी हुआ करती थी। जिनमें कैदियों को प्रशिक्षण दिया जाता था। वे फांसी की रस्सी के अलावा दरी, कंबल, साबुन, फीनाइल का निर्माण भी बनाया करते थे। हाल के दशक तक यहां से बिहार की अन्य जेलों को दरी और कंबल की आपूर्ति भी की जाती थी। इसी से फांसी के फंदे का इतिहास जुड़ा हुआ है।
वजन और बंदी की लंबाई के आधार पर बनती है रस्सी
बक्सर खबर । जेल में बनने वाली मनीला रस्सी कैदी के वजन और लंबाई के अनुसार बनायी जाती है। सामान्य रस्सी तीन सौ किलो तक का वजन उठा सकती है। प्रभारी जेल अधीक्षक त्रिभुवन सिंह बताते हैं। इसकी लंबाइ अलग-अलग भी होती है। अमूमन इसे 16 या 18 फीट लंबा बनाया जाता है। निर्भया के समय काम में लगे बंदियों ने बताया था। पहले लगभग 54 फीट लंबी एक रस्सी बनती है। फिर उसी को तीन बराबर हिस्से में लपेट का मोम से घर्रा मारा जाता है। फिर रस्सी काम के लिए तैयार हो जाती है। पुराने आंकड़े बताते हैं।
जब मुंबई बम धमाके दोषी याकुब मेनन, संसद हमले के दोषी अफजल गुरू और और मुंबई हमले के दोषी अजमल कसाब के लिए फंदा गया था। तब इसकी कीमत लगभग 1725 रुपये थी। फिलहाल इसकी दर 2120 रुपये के लगभग है। जिस जेल को फंदे की आवश्यकता होती है। वह चलान जमाकर इसका आर्डर भेजता है। एक बंदी को फांसी देने के लिए दो रस्सियां मंगाई जाती हैं। क्योंकि एक से पहले पूर्वाभ्यास किया जाता है। फिर आवश्यकता के अनुरुप दूसरी रस्सी का इस्तेमाल होता है।
नोट साप्ताहिक कालम यह भी जाने मंगलवार को प्रकाशित होता है। जिसमें नई और पुरानी जानकारियां आपके सामने इस कालम के माध्यम से रखते हैं।