-बंगाली टोला स्थित आवास पर ली अंतिम सांस
बक्सर खबर। बक्सर की साहित्यिक, सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना को झकझोर देने वाली खबर आज सुबह आई, जब यह ज्ञात हुआ कि वरिष्ठ साहित्यकार, समाजसेवी और शिक्षाविद डॉ. ओमप्रकाश केसरी ‘पवननंदन’ का निधन हो गया। वे 74 वर्ष के थे और बीते छह महीनों से गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे। उनका आवास ‘पार्वती निवास’, बंगाली टोला पानी टंकी के पास, वर्षों से साहित्य, संवाद और संस्कारों का सजीव केंद्र बना रहा। पवननंदन जी का जीवन बहुआयामी था। वे कवि, आलोचक, संपादक, शोधकर्ता और समाज-संवाद के सजग प्रहरी थे।
उन्होंने 70 से अधिक पुस्तकों की रचना और संपादन किया, जिनमें कविता, समालोचना, शोध और जीवनी साहित्य शामिल हैं। हिंदी, भोजपुरी और संस्कृत भाषा के माध्यम से वे साहित्यिक चेतना को जन-जन तक पहुँचाते रहे। ‘बक्सर विद्वत परिषद’ के सक्रिय सदस्य और शोध टीम के प्रमुख भागीदार रहे डॉ. केसरी ने पिपरा घाट की सांस्कृतिक विरासत, गौरीशंकर मंदिर की परंपरा और मेले की संस्कृति पर विस्तृत शोध कार्य किया। उनका साहित्य केवल शब्दों का जाल नहीं, बल्कि समाज की नब्ज को समझने का माध्यम था। वे किसी भी जयंती, पुण्यतिथि या राष्ट्रीय दिवस को बिना आयोजन नहीं गुजरने देते थे।
उनका विशेष आग्रह रहता था कि समाज के उत्कृष्ट व्यक्तित्वों को हर स्तर पर सम्मानित किया जाए। उनकी संस्था ने न जाने कितने डॉक्टरों, पत्रकारों, शिक्षकों, वकीलों और कलाकारों को मंच पर लाकर सम्मानित किया। पार्वती निवास साहित्यिक बिरादरी का तीर्थ बन चुका था, जहाँ कविता पाठ, पुस्तक विमोचन और चिंतन-मनन के कार्यक्रम नियमित होते थे। उनके गुरु, वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रामेश्वर वर्मा का नाम वे सार्वजनिक मंचों पर श्रद्धा से लेते रहे। मृदुभाषिता, गहरी संवेदनशीलता और आत्मीय व्यवहार उनकी पहचान थी। सफेद वस्त्रों में हमेशा संयमित दिखने वाले पवननंदन जी, हनुमान भक्त थे और यौगिक साधनाओं से जीवन भर जुड़े रहे।
युवावस्था में पहलवानी करने वाले पवन जी, उम्र के अंतिम पड़ाव में छड़ी के सहारे चलते रहे, लेकिन विचारों और शब्दों की धार कभी कम नहीं हुई। उन्हें देशभर के मंचों पर सम्मानित किया गया, अनेक साहित्य अकादमियों, मंचों और संस्थाओं ने उन्हें विशिष्ट साहित्यसेवी, जीवन गौरव, कवि रत्न, हिंदी समर्पण सम्मान जैसे दर्जनों सम्मानों से नवाजा। हाल ही में ‘प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा’ ने उन्हें सलाहकार मंडल में शामिल किया था और ‘भारत की बात’ पत्रिका ने उन्हें ‘हिंदी सेवी सम्मान’ से सम्मानित किया। डॉ. ओमप्रकाश केसरी पवननंदन का निधन केवल एक साहित्यकार के निधन की सूचना नहीं, बल्कि एक युग के अवसान की दस्तक है। वे हमेशा अपने स्नेह, संवेदना और सतत साहित्यिक साधना के लिए स्मरणीय रहेंगे। बक्सर की माटी में अब एक विरल विचारक की गंध बसी रहेगी।