-पहले था किशोर अब हो गया है बालिग
बक्सर खबर। दस वर्ष बाद परिवार से बिछड़ा दिव्यांग अख्तर अपने घर वापस लौट गया। उसे पाकर परिवार वाले बहुत खुश थे। उन्होंने कहा हमने तो अब इसके बारे में सोचना ही छोड़ दिया था। क्योंकि जब यह गुम हुआ था। उस वक्त इसकी उम्र महज ग्यारह वर्ष थी। यह कहानी है उस अख्तर की जिसे वर्ष 2013 में मुफस्सिल थाना के प्रभारी नरेंद्र कुमार ने लावारिस हालत में पाया था। हालांकि दिव्यांग होने की वजह से वह कुछ अपने बारे में बता नहीं रहा था। उस समय इसे पटना के बालगृह भेज दिया गया था। लेकिन, जनवरी 2014 में जब बक्सर में बालगृह खुला तो पटना से उसे बक्सर भेज दिया गया। यहां पिछले दस वर्षो से वह रहता चला आ रहा था।
अब स्थिति यह आ गई थी कि कहने को बालगृह लेकिन, वहां एक व्यस्क रह रहा था। लेकिन बाल कल्याण समिति के सदस्य नवीन कुमार ने अपने प्रयास से उसके परिजनों को ढूढ निकाला। सोमवार को उसे लेने पूर्णिया के अब्बा मुस्ताक, अम्मी नईमा खातून व अन्य रिश्तेदार आए। काउंसलिंग में उन्होंने पूरी जानकारी दी। इसके बाद बाल गृह की अधीक्षक रेवती कुमारी ने बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष मदन सिंह और अन्य सदस्यों की मौजूदगी में उसे परिवार को सौंप दिया। विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार वह बोल पाने में सक्षम नहीं था। इस वजह से उसका वास्तविक नाम पता नहीं था। यहां मुन्ना के नाम से वह रह रहा था। इस लिए किसी का ध्यान उस तरफ नहीं जा रहा था।
यह मुस्लिम बालक है, और इस वजह से उसकी शिनाख्त भी नहीं हो रही थी। इसी क्रम में बालगृह के कर्मी शहीद अली ने उस युवक को नोटिस किया। यह हिंदू नहीं है, मुसलमान युवक है। इस बीच दस वर्ष पहले लापता हुए बच्चों के बारे में नवीन कुमार ने पता करना जारी रखा। वहां के एक पुलिस पदाधिकारी से महत्वपूर्ण जानकारी मिली। उस गांव के एक जन प्रतिनिधि का नंबर भी मिल गया। जिसने पता कर बताया कि चांदी कनेला गांव के मुस्ताक का पुत्र दस वर्ष पहले लापता हुआ था। फिर घर वालों से संपर्क किया गया। उन लोगों ने उसका आधार व दिव्यांगता प्रमाणपत्र भेजा। अब पूरी सच्चाई सामने आ गई। और जब परिवार के लोग बीते दिन सोमवार को बक्सर आए तो उनका वर्षो पहले खोया बेटा पुन: मिल गया। इस दौरान योगिता सिंह, काउंसलर सोनी सिंह, बाल गृह कर्मी शहीद अली के यह कार्य संपन्न हुआ।