बक्सर खबरः शिक्षा के व्यवसायिकरण तथा मुनाफा का धंधा बन चुके ट्यूशन उद्योग के इस दौर में अगर कोई मुफ्त में बच्चों को पढ़ाये तो इसे जुनून नहीं तो और क्या कहेंगे। सिमरी अंचल के बड़का सिहनपुरा गांव में ऐसे शिक्षक है पं.राम प्रवेश ओझा। 34 वर्षों की सेवा के बाद जनवरी 1998 में केपी उच्च विद्यालय डुमरी से रिटायर्ड उक्त शिक्षक की उम्र अभी 84 वर्ष है। संस्कृत शिक्षक तथा इलाके के कुशल कर्मकांडी श्री ओझा 1980 से मैट्रिक तक के बच्चों को संस्कृत पढ़ाते है। प्रति वर्ष उनके यहां पांच सौ बच्चों को मुफ्त में पढ़ाया जाता है।
जाहिर सी बात है इस फ्री सेवा का लाभ अब तक हजारों छात्र उठा चुके है। सिमरी अंचल के एक दर्जन गांवों के सैकड़ों छात्र फिलहाल मुफत में संस्कृत श्क्षिा का लाभ उठा रहे हैं। बड़का सिहनपुरा के अलावे महरौली, दुबौली एकौना, निमौआ छोटका सिहनपुरा, काजीपुर, रमधनपुर, चकनी, डुमरी, खरहाटाड़, नगरपुरा आदि गांवों के छात्रों का सुबह होते ही जमावड़ा लगने लगता है। सुबह से पढ़ाई का यह सिलसिला दिन के ग्यारह बजे तक चलता है तो शाम तीन बजे से छात्रों को कर्मकांड की शिक्षा दी जाती है। खास यह कि इस पढ़ाई के बदले छात्रों को कोई शुल्क नहीं देना पड़ता है। श्री ओझा का कहना है कि संस्कृत शिक्षकों की कमी तथा संस्कृति के रक्षा इस भाषा की जरूरत को ध्यान में रख मुफ्त में पढ़ाने का फैसला लिया।
कहते शिक्षक संस्कृत शिक्षक
87 वर्षीय संस्कृत शिक्षक रामप्रवेश ओझा कहते है कि 34 साल तक मैने बिहार सरकार के अधीन शिक्षक के रूप में के. पी. उच्च विद्यालय डुमरी में बच्चों को पढ़ाया। उस दौरान भी गांव से नजदीक होने के कारण मैं बच्चों पढ़ता था। 1985-86 तक मैं परिवार के दायित्व को निभाने के लिए 20 रूपया फिस के तौर पर लेता था। परन्तु 1987 के बाद मुफ्त शिक्षा देने प्ररम्भ कर दी। क्योंकि बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो गये। तब से लेकर अबतक मुफ्त शिक्षा देते आ रहा हूं। मुझे बच्चों को पढ़ाने से आत्मा संतुष्टि मिलती है।