बक्सर खबर। ठंड बढ़ गई है। ऐसे में लोग हाथ गरम करने के फिराक में घूम रहे हैं। जिनके पास खुद का जुगाड़ नहीं वे दूसरे की बोरसी पर हाथ सेंक रहे हैं। कुछ यही बड़बड़ाते बतकुच्चन गुरु आज शाम मिले। हमने उनका हाल पूछा, कल आप दिखे नहीं। वे बोले हम नहीं दिखे तो का हो गया। ए जिला में अइसन-अइसन लोग हैं। जो हर जगह नजर आते हैं। जहां काम नहीं उहों पहुंच जाते हैं। सेटिंग का जमाना है। जहां भी आमदनी का स्त्रोत दिखता है। सेटिंग वाला सब पहुंच जाता है। सरकार भले भ्रष्टाचार रोके ला तरह-तरह का जुगाड़ करे हैं। लेकिन, जौन सब के खेला खेलना है। उ सब अप्पन एगो आदमी बहाल कर देता है। जौन बाहर से माल वसूल के पहुंचता है। मेरी तरफ देखते हुए बतकुच्चन गुरु बोले, का समझे। मैंने कहा समझ गया भ्रष्टाचार थम नहीं रहा है। जगह-जगह दलाल काम कर रहे हैं।
मेरी बात सुन वे जोर से हंसे। का गुरू बचवन के तरे जवाब दे रहे हो। तो के पता भी है, जिला में का चल रहा है। हम बात रहे हैं। यहां बड़का के नीचे छोटका बैठता है। उ इन दिनों खुबे सटिया रहा है। हमको तो बुझा रहा है। बड़का को पता भी नहीं छोटका गेम बजा रहा है। छोटका है कि बड़का को एतना विश्वास में लिया है कि ओकर आजू-बाजू देखे ला फुरसत न है। बड़का स्वभाव से भी बड़ा आदमी लगे है। लेकिन, छोटका बहुते चालू है। अधिकारी, कर्मचारी, खबरदारी सबको पोश के रखा है। सब कमा रहे हैं। उनकी इतनी बाते सुन मन उकता गया। वे कहना क्या चाह रहे हैं। मैं समझ नहीं पा रहा था। उनको मैंने रोका और पूछा। आप किसके बारे में बता रहे हैं। वे बोले मामले बड़े लोगों का है। उनके आगे पीछे बहुत लोग सलाम ठोकते हैं। उ लोग का नाम रुतबा इतना है कि जब चाहे फंसा देंगे। ए ही ला नाम नहीं बता रहे हैं। समझ सके हैं तो इशारा समझो। न समझ में आए तो चूप रहो। इतना कह आज वे खुद निकल लिए। मैं उनकी बाते सोचता दफ्तर चला आया। बड़का को पता नहीं छोटका है चालू। आखिर माजरा क्या है…?