बक्सर खबर। शहर बदल रहा है। पिछले पन्द्रह वर्ष में एक बदलाव देखने को मिला है। नाका नंबर एक अब आदर्श थाना हो गया है। सामने बाबू कुंवर सिंह की मूर्ति भी लग गई है। यहां का चौक शाम होते ही गुलजार हो जाता है। हर तरफ लोग गलचउरन करते मिल जाते हैं। लेकिन बतकुच्चन गुरु यहां नहीं आते। कहते हैं वहां दिन में जो होता है। वह देखने लायक नहीं है। आदर्श थाना बन तो गया। लेकिन, वहां जो हो रहा है वह आदर्श का तार-तार करने वाला है। गुरुवार को वे पीपी रोड में दिखे। चिंतन की मुद्रा में खामोश थे। मैंने देखा तो इसका कारण पूछा।
वे बोले हम यह सोच के परेशान हैं। देश और दुनिया कहां जा रही है। जितनी तेजी से राजनीति ढर्ऱा बदल रहा है। उतनी ही तेजी से मीडिया का स्तर भी गिर रहा है। लेकिन इससे जुड़े लोगों को कुछो नहीं बुझा रहा है। अखबार कल तक आदर्श का मानक हुआ करते थे। देश और समाज की दिशा बदलते थे। लेकिन आज के हालात क्या हैं। अब देखिए अपने शहर में कितना अखबार आता है। मैंने जवाब दिया छह प्रमुख दैनिक हैं। कुछ बाहर के संस्करण भी आते हैं।
वे बोले सवाल इ ना हौ, केतना आता है और केतना बेचाता है। सवाल हौ केतना फुकाता है। कल तक जो अखबार सच्चाई का प्रतीक हुआ करते थे। अब ओकरा के लोग चौक पर जला रहे हैं। इ बात तो शर्म से डूब मरे वाली है। कौन मुंह ले के मीडिया वाला बाजार में जाएंगे। तुलसी दास जी कह गए हैं। आवत हिय हरसे नहीं, नैनन नहीं सनेह। तुलसी तहं नहीं जाइए, कंचन बरसे मेह।। बावजूद इसके मीडिया वाले किस लालच में सारी हदें पार कर रहे हैं। नैतिकता का घोर अभाव हो गया है। जब मीडिया का यह हाल है तो अन्य लोगों की क्या दशा होगी। इससे समाज में क्या संदेश जाएगा। हमारे पुरनियां कहते हैं, अगर आप कुल की मर्यादा को बढ़ा नहीं सकते तो कम से कम जो है उसे बचा कर रखिए। यह बात तो लोगों को समझ में आनी चाहिए।