बक्सर खबर। आजकल जिले में एक मुद्दा काफी चर्चा का विषय बना हुआ है। थाने की जमीन ही बेच दी। मीडिया में खबर आई तो खलबली मच गई। जो मीडिया वाले पहले दिन खबर छापने से चूक गए। वे अगले दिन खबर लेकर आए बेची नहीं गई जमीन। रजिस्ट्री नहीं हुई है, इसका तर्क दे खबर छापी गई। मामला यहीं नहीं थमा ग्रामीण मिले एसपी से। कहा हमने आवेदन नहीं दिया है। यह भी छपा। लेकिन किसी ने यह नहीं छापा कि बगैर प्रशासनिक अनुमति के ऐसा करना गलत है। इस विषय को लेकर मेरा मन व्यथित था। मैने सोचा इस मामले में बतकुच्चन गुरु से विचार विमर्श होना चाहिए। मैने उनसे संपर्क साधा।
गुरुवार की शाम उनसे मुलाकात हुई। मैंने उनके सामने अपनी बात रखी। सुनते ही बोले अरे गुरू हमसे भी एक मिला पूछ रहा था। कैसे लिख दिए बेच दी जमीन। वहां तो थाने की सुरक्षा के लिए जमीन दी गयी है। अरे भाई जन कल्याण के लिए जमीन दिया है। एकरे बदे कोई से अनुमति ले वे का कौन जरुरत है। जमीन ओके नाम होती तो बेच भी देता। तब यहां कोई बकचोदी नहीं करता। उ त ससुर दान दे के फंस गवा है। जवन जिला के कलेक्टर नाही कर सकते व किया है। रही बात ओकर समर्थन में खबर छापे ला तो उहां भी गलत हो रहा है।
यहां छपना चाही कि दानवीर निकला पुलिस वाला, जन कल्याण के लिए दे दी जमीन। सुने में आ रहा है आवेदक भी सब मुकर गए हैं। हम तो कहते हैं व मीडिया वाले अगमजानी थे सब के सब ससुर जौन सबकुछ देख के भी खबर ना छाप रहे थे। लेकिन, एकाद मिला छाप के सब गड़बड़ कर दिए जो है सो की। लेकिन, यहां एगो पेंच फंस गया है। थाने का हाता टूटा, नया दुआर खुल गया। एतना सब हुआ और दानवीर की खबरिया ना छपी। अब जब दुसर छाप दिया तो छपाछप-छपाछप हो रहा है। गुरू इहां दाल में कुछ गड़बड़ हौ। एम्मन कई मिला सब मिले हैं। तबहीं ससुर सब गलत के गलत ना कहत हैन। हमें बतकुच्चन गुरू की बातें सहीं लगी। मैं वहां से अपने रास्ते चल निकला। यह सोचते हुए सच तो सच है किसी के पर्दा डालने से वह बदलने से रहा।