बक्सर खबर। चुनाव की अपनी एक विशेषता है। जब वह शुरू होता है चर्चा स्वत: जोर पकड़ लेती है। गांव की चौपाल में बैठे लोग क्या समीक्षा करते हैं। एक-एक विषय पर गंभीर बहस होती है। शायद इतनी चर्चा संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद पर नहीं होती होगी। इतना सबकुछ होने के बाद भी राजनीति का दुखद अंत जाति पर आकर होता है। क्योंकि चुनाव छोटे पद का हो या बड़े पद था। अपने प्रदेश में जाति एक अहम मुद्दा है।
लोग कहते हैं पंचायत चुनाव में जाति की हवा निकल जाती है। बावजूद इसके जाति का मुद्दा अंदर ही अंदर लोगों को कमजोर करता ही रहता है। इस विषय को लेकर हमारे मन में भी सवाल उठ रहे थे। सो हमने बतकुच्चन गुरू से इसकी चर्चा करनी चाही। आखिर वे क्या कहते हैं इस बारे में। कई माह हो गए, इस बीच उनसे बात भी नहीं हुई। हमने संपर्क साधा तो वे चहकते हुए बोले। क्या बात हौ गुरू। जमाना हो गया तोके देखे। हमने उनसे अपने मन की बात कही।
सुनते ही वे तपाक से बोले। अरे गुरू तू का जाति-फाती के चक्कर में फंसे हो। इस बस कवनो बुड़बक न है। चुनाव लड़ते सब गांव-गांव घूम के जाति के दुहाई देता है। अप्पन प्रदेश में तो जाति-जाति के पार्टी भी है और ओकर नेता भी। इस कवनों के भेजा में बात नहीं आता। जौन मिला दूर गांव में जाति के दुहाई देता है। उ ससुरा अप्पन गांव में बात-बात पर दयाद के छाती तोड़ता है। का समझे, चुनाव में पूछेंगे जाति, दयाद की तोड़ेंगे छाती। बतकुच्चन गुरू की यह बात बड़ी पसंद आई। फिर उनको राम सलाम कहा और फोन रख दिया।