बक्सर खबर। भगवान की सेवा में तन नहीं मन को लगाए। तन और धन भगवान को पाने के माध्यम हो सकते हैं। लेकिन, उनकी कृपा तभी मिलेगी अथवा आपका उनसे जुड़ाव तभी होगा। जब मन समर्पित होगा। आम तौर पर बहुत से लोग भगवान की पूजा करते हैं। वे साफ-सफाई करते हैं, पूजन सामग्री एकत्र करते हैं। अपना लंबा समय पूजा में लगाते हैं। लेकिन हमारा मन कहीं और ही विचरण करता रहता है। इस लिए जरुरी है हम अपन मन अथवा उनके प्रति भाव समर्पित करें। यह बातें पूज्य संत जीयर स्वामी जी महाराज ने रविवार को कथा के दौरान इंदौर के चातुर्मास में कहीं।
स्वामी जी ने दादा भिष्म की कथा बताई। वे अपने अंतकाल में बाणों की शैया पर लेटे थे। सभी पांडव भगवान कृष्ण के साथ उनके दर्शन को गए। वहां दादा भिष्म ने कृष्ण से कहा वासुदेव में आपसे अकेले में बात करना चाहता हूं। भगवान से बात होने लगी तो उन्होंने कहा मैं अपने बेटी की शादी करना चाहता हूं। कृष्ण को बड़ा आश्चर्य हुआ। आप तो ब्रह्मचारी हैं आपकी बेटी कौन है। दादा ने कहा आजीवन मैंने धर्म का पालन किया। लेकिन मैं अपनी बुद्धि रुपी बेटी का विवाह आप से करना चाहता हूं। मैंने यह अनुभव किया है, इन मन को आपमें लगाना चाहिए। यह कथा प्रेरणा देती है। व्यक्ति को अपना मन भगवान को समर्पित करना चाहिए।
इस कथा में एक प्रसंग और जुड़ा है। किसकी मृत्यु उत्तरायण में हो किसी मृत्यु दक्षिणायन में हो। लेकिन मैं कहता हूं मृत्यु जहां हो और जैसे हो। अगर आपने अच्छे कर्म किए हैं तो आपको सदगती जरुर मिलेगी। क्योंकि मनुष्य को उसके कर्मों के अनुरुप फल प्राप्त होता है। अगर आप चोरी अथवा पाप करते हैं। आपकी मृत्यु काशी में हो तो क्या आपको मोक्ष मिलेगा? नहीं आपने जैसे कर्म किए हैं वैसा ही फल आपको प्राप्त होगा। चाहे आप जहां और जिस अवस्था में प्राण त्याग करें। इस लिए व्यक्ति को अपना आचरण, कर्म, व्यवहार सही रखना चाहिए।