-51 वां सिय-पिय मिलन महोत्सव द्वितीय दिवस
बक्सर खबर। 51 वां सिय-पिय मिलन महोत्सव 12 दिसम्बर से ही प्रारंभ हो गया है। आज रविवार को उसका दूसरा दिन था। इस वर्ष कोविड के कारण आयोजन समिति है। लेकिन, आश्रम से जुड़े लोग सभी कार्यक्रम अपनी सुविधा अनुसार संपन्न कर रहे हैं। प्रात: काल में श्रीरामचरितमानस जी का नवाहन पारायण पाठ का आयोजन हुआ, तत्पश्चात दोपहर में जय कांत शास्त्री उपाख्य रामकिंकर जी महाराज के द्वारा श्रीमद् वाल्मीकि रामायण की कथा का वाचन किया गया।
दूसरे दिन की कथा में किंकर जी ने प्रभु श्रीराम की जन्म स्थली अयोध्या का वर्णन करते हुए कहा की 12 योजन लंबी और 3 योजन चौड़ी सरयू के पावन तट पर अवस्थित तीनों लोकों की सबसे पावन, दिव्य, चिन्मयी नगरी के रूप में अयोध्या का महत्व है। जिसका निर्माण स्वयं प्रभु के द्वारा किया गया है। इसी अयोध्या धाम के राजा के रूप में इक्ष्वाकु वंश के परम प्रतापी, धर्मानुरागी, तीनों लोकों में जिनका यश है ऐसे दशरथ जी है।
महाराज जी ने राजा दशरथ के द्वारा पुत्र प्राप्ति के लिए किए गए अश्वमेघ यज्ञ कर्तव्य वर्णन करते हुए कहा की अश्वमेध यज्ञ केवल वही कर सकता है जो संपूर्ण धरती का मालिक को क्योंकि इसमें दक्षिणा के रूप में संपूर्ण पृथ्वी दी जाती है। उन्होंने कहा मानव जीवन के कल्याण के लिए भगवान राम का निरावरण साक्षात्कार जरुरी है। वह वाल्मीकि रामायण के श्रवण से ही संभव है। श्रीमद् वाल्मीकि रामायण की कथा श्रवण का अवसर सौभाग्य से ही प्राप्त होता है। यह ग्रंथ वाल्मीकि रूपी पर्वत से निकलकर राम रूपी सागर की ओर ले जाने वाली गंगा है।
इसमें स्वयं को समर्पित कर दीजिए, ये स्वत: आपको रामरूपी परमानंद के सागर तक पहुंचा देगी। भगवान के अधीन रहना ही श्रेष्ठ कार्य है। भगवान की अधीनता न प्राप्त हो तो भागवत के अधीन रहना चाहिए। भगवान एवं भागवत की अधीनता से जीवन धन्य हो जाता है।आज की कथा में प्रभु श्रीराम के जन्म की कथा का सुन्दर विवेचन करते हुए कहा कि प्रभु श्रीराम का जन्म धर्म के चारो स्वरूपों की रक्षा लिए हुआ था। सायंकाल में आश्रम के परिकरो के द्वारा श्री भक्तमाल जी संगीतमय पाठ एवं भजन कीर्तन किया गया।