बक्सर खबर। बक्सर वह जगह है। जिसने समय-समय प्रदेश ही नहीं देश को दर्शन दिया है। यहां की धरा अध्यात्मिक उर्जा से ओत-प्रोत है। ऐसा जिले के लोग जानते ही होंगे। यहां ब्रह्मा जी से लेकर भगवान शिव और स्वयं भगवान विष्णु ने आराधना और पूजा की है। उन्हीं भगवान विष्णु के अवतार प्रभु श्रीराम जब युवा अवस्था में सिद्धाश्रम आए थे। तब विश्वामित्र मुनी ने उन्हें लिट्टी-चोखा का भोजन कराया था।
भगवान जब अयोध्या से पहली बार बाहर निकले तो सीधे बक्सर आए। क्योंकि उन्हें यहां महर्षी विश्वामित्र का यज्ञ संपन्न करना था। जब यज्ञ संपन्न हुआ तो वे इस क्षेत्र में अन्य आश्रमों पर संत दर्शन के लिए गए। उन्होंने पांच आश्रमों का भ्रमण किया। जो आज पंचकोशी परिक्रमा के नाम से विख्यात है। भगवान सबसे पहले अहिरौली गए। जहां गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या जी का उद्धार हुआ। उन्होंने पकवान बनाकर भगवान को खिलाया।
इसके बाद क्रमश: नारद आश्रम जो फिलहाल नदांव के नाम से जाना जाता है। अगले दिन भार्गव ऋषि के आश्रम गए। जहां चुड़ा और दही का प्रसाद उन्हें प्राप्त हुआ। आज यह गांव भभुअर के नाम से विख्यात है। चौथा पड़ाव छोड़का अनुआव जहां उद्दालक मुनी के आश्रम हुआ करता था। वहां सत्तु मुल्ली का प्रसाद ग्रहण किया जाता है। पांचवे और अंतिम दिन अर्थात अगहन माह के कृष्ण पक्ष की नौमी तिथि को भगवान विश्रामित्र मुनी जी के आश्रम चरित्रवन आए। यहां उन्हे प्रसाद स्वरुप लिट्टी चोखा परोसा गया। भगवान ने इस तिथि को यही प्रसाद ग्रहण किया था।
उसी समय से एक लोक मान्यता बनी और उसका निर्वहन आज तक हो रहा है। अगहन महीने में यहां लिट्टी-चोखा का मेला लगता है। हम सभी बक्सर वासियों को गर्व होना चाहिए। आज बिहार का व्यंजन लिट्टी चोखा पूरे देश में विख्यात है। उसका प्रचलन कभी बक्सर से शुरू हुआ। इतना ही नहीं अगर देश में एक साथ कहीं सामूहिक रुप से लिट्टी बनाने और खाने की परंपरा है तो वह है बक्सर। पंचकोश मेले का महात्म भले ही बक्सर के चरित्रवन से जुड़ा है। लेकिन सच्चाई यह है कि इस तिथि को जिले के गांव-गांव और हर घर में यही भोजन बनता है। लोग इसे चाव से खाते और एक दूसरे को प्यार से खिलाते हैं। यह है बक्सर की विशेषता।
मेले का महात्म जानने के लिए क्लिक करें:-
आज के मेले का नजारा देखने के लिए यह वीडियो देखें