‌‌‌शाहाबाद के शेर की अंतिम विदाई याद रखेगा जमाना

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-देश की राजनीति में अपनी पहचान छोड़ गए हैं कमल सिंह
बक्सर खबर। आज की तिथि को बक्सर के युवा, बुजुर्ग और राजनीतिक लोग याद रखेंगे। एक ऐसे शख्स ने आज यहां की धरती से विदा लिया। जिसे अपनी मातृभूमि से प्यार था। वे चाहते तो परिवार के सदस्यों के साथ कहीं और जा सकते थे। लेकिन, कभी अपनी मातृभूमि से अलग नहीं हुए। उनका शरीर अंतत: अपनी माटी में मिल गया। महाराजा बहादुर कमल सिंह का आज 6 दिसम्बर को बक्सर के मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार हुआ।

जब सुबह उनकी शव यात्रा महाराजा कोठी से पुरखों के गढ़ राजगढ़ पहुंचा तो वहां इतने लोग जमा थे। जिसे देखकर लग रहा था। सचमुच किसी राजा की सवारी जा रही है। अपने शानदार जीवन और गौरव मई इतिहास की परंपरा का निर्वहन करते हुए कमल सिंह सदा-सदा के लिए अपने को विदा कह गए। पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनकी अंतिम विदायी हुई।

मुखाग्नि देते जेष्ठ पुत्र चन्द्रविजय सिंह

चरित्रवन घाट पर पहले से प्रशासनिक व्यवस्था थी। सभी पदाधिकारी और राज्य सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर मंत्री जय कुमार सिंह मौजूद थे। उन्होंने पार्थिव शरीर को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उनके साथ राजद के प्रदेश अध्यक्ष व बक्सर के पूर्व सांसद जगदानंद सिंह, वर्तमान सांसद व केन्द्रीय मंत्री अश्विनी चौबे, सदर विधायक संजय तिवारी आदि सभी लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।

सलामी देते जिला पुलिस के जवान

महज 26 वर्ष की आयू में बने थे पहली लोक सभा के सदस्य
बक्सर खबर। महाराजा बहादुर कमल सिंह महज 26 वर्ष की आयु में निर्दलीय सांसद बने थे। उस समय इस लोकसभा क्षेत्र का नाम शाहाबाद नार्थ वेस्ट था। 1952 में जब प्रथम लोकसभा का चुनाव हुआ। तो कांग्रेस की उम्मीदवार कलावती सिंह को उन्होंने हराया। 56 में जब दूसरा चुनाव हुआ तो उन्होंने कांग्रेस के ही हरगोविंद सिंह को परास्त किया। दस वर्ष तक उन्होंने यहां का नेतृत्व किया।

श्रद्धांजलि देते मंत्री जयकुमार सिंह व पूर्व मंत्री जगदानंद सिंह

कुछ दसक बाद वे भाजपा उम्मीदवार के रुप में भी दो बार चुनाव लड़े। लेकिन, उनको सफलता नहीं मिली। तब भाजपा और कांग्रेस की जंग में कोई और सफल हुआ। लेकिन, उन्होंने जो छाप जनमानस पर छोड़ी। वह स्थान कोई दूसरा नहीं ले पाया। जिसका उदाहरण रही उनकी अंतिम यात्रा। जिसमें शामिल होने के लिए आम जन के साथ सभी दलों के प्रमुख लोग पहुंचे।

राजगढ़ से निकली शव यात्रा

रह गई कसक
बक्सर खबर। महाराज अब हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन, उनकी कसक अब भी हमें याद रहेगी। उन्होंने डुमरांव में टेक्सटाइल फैक्ट्री की शुरूआत की थी। जो उनके रहते ही बंद हो गई। उसे अंतिम दौर तक चलाने का प्रयास उन्होंने किया। फैक्ट्री बिकी, तो इस करार के साथ। उसे चलाया जाएगा। लेकिन, महाराज अस्वस्थ हो गए। उनके पीछे उस फैक्ट्री के साथ जो हुआ। वह सभी जानते हैं। राजनीतिक सफर में उनके साथ रहने वाले लोग बताते हैं। वे हमेशा चाहते थे। राजनीति को अपराध से दूर करना चाहिए। इसमें वैसे लोगों को प्रवेश नहीं करने देना चाहिए। अन्यथा वे सत्ता का गलत प्रयोग करेंगे। इसका जिक्र वे हमेशा अपने साथियों से करते थे।

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