बक्सर खबर। विद्वान लोग अपनी विद्वता का बखान नहीं करते। वह तो उनके आचरण, बचन, व्यवहार व ज्ञान से स्वत: लोगों को पता चल जाता है। सच्चा विद्वान वही है जो सहज, सरल अथवा मृदु भाषी हो। यह बातें पूज्य संत जीयर स्वामी जी महाराज ने रविवार को अपनी कथा के दौरान इटाढ़ी के इंदौर में कहीं। जहां इन दिनों उनका चातुर्मास व्रत चल रहा है। अपराह्न साढ़े चार बजे जब उनकी कथा प्रारंभ हुई तो अनेक श्रद्धालु वहां पहले से एकत्र हो गए थे। उनके बीच सूत जी और सौनक ऋषि के संवाद की चर्चा करते हुए स्वामी जी ने कहा विद्वान हमेशा जगत के कल्याण की सोचता है।
यह प्रसंग नैमिसारण का है। वहां सौनक ऋषि ने भागवत कथा की तैयारी की थी। 88000 हजार ऋषि एकत्र थे। उसी भीड़ में सूत जी पहुंचे और एक जगह आसन लेकर बैठ गए। उस काल खंड में महान विद्वानों में सूत जी का अपना अलग स्थान था। कथा की तैयारी चल रही थी। इतने में किसी ने उनको पहचान लिया। सूचना सौनक मुनी तक पहुंची। वे आए और उन्हें आदर पूर्वक ले जाकर सीधे व्यास गद्दी पर बैठा दिया। कम आयु के सूत जी को देखर लोग दंग रह गए। 88 हजार ऋषियों के बीच उनका चयन इस कार्य के लिए यह उनकी विद्वता का प्रमाण था। सौनक मुनी ने कहा मान्यवर आप हमें वैसी कथा सुनाए जिसे सुने हम और आनंद पूरे जगत को प्राप्त हो। अर्थात एक विद्वान दूसरे विद्वान से जगत हित की भावना का प्रश्न करता है।
किसकी करनी चाहिए आराधना
बक्सर खबर। कथा के दौरान स्वामी जी ने कहा सूत जी ने बताया पूरे जगत को आनंद तभी आएगा। जब भगवान सच्चिदानंद की आराधना हो। भगवान कृष्ण को प्रणाम निवेदित किया जाए। क्योंकि शास्त्र बताते हैं हजारों यज्ञ, जप, तप व दान से जितना फल नहीं प्राप्त होता है। वह भगवान कृष्ण को प्रणाम करने मात्र से प्राप्त होता है। कहा तो यह गया है कि धर्म कार्य करने वाले सदाचारी इस दुनिया में पुन: आते हैं लेकिन भगवान कृष्ण को प्रणाम करने वाला उनका ध्यान करने वाला पुन: संसार में नहीं आता। अगर कभी आता भी है तो उनकी आज्ञा से धर्म कार्य के लिए आता है और वापस लौट जाता है। इस लिए व्यक्ति कोई भी उसे ऐसे ही परमात्मा की आराधना करनी चाहिए। जो सत्य, चित व आनंद का स्वरुप हो।