बक्सर खबर। शहर में सदर हास्पिटल की कभी साख हुआ करती थी, लेकिन अब नहीं है। क्यों? क्योंकि, यह खुद बीमार है। जिनके पास पैसा है वे तो निजी अस्पतालों में अपना इलाज करा ही लेते हैं, लेकिन मर रहे हैं बेचारे गरीब जिनके पास निजी अस्पतालों का बिल भरने के लिए पैसा नहीं है। ऐसे मरीजों को सोचना पड़ रहा है कि वे इलाज के लिए जाएं तो जाएं कहां? यह हालात तब है जबकि यहां के सांसद अश्विनी चौबे खुद केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री हैं और सूबे में भी उनकी पार्टी मिलकर सरकार चला रही है। और तो और प्रदेश का स्वास्थ्य महकमा भाजपा के मंगल पांडेय संभाल रहे हैं। जवाबदेही जिलाधिकारी अरविंद कुमार वर्मा की भी बनती है। उनके नाक के नीचे पिछले दस माह से अस्पताल का एक्सरे मशीन का बंद होना हैरान तो करता ही है।
आज गुरुवार को सदर हास्पिटल में करीब एक घंटे के अंदर ऐसे सात मरीज मिले जिन्हें एक्सरे कराना था। अफसोस की एक्स-रे रूम में ताला जड़ा था। यह ताला पिछले दस माह से लटका है। इस संबंध में जब हास्पिटल मैनेजर दुष्यंत सिंह से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि पूरे प्रदेश की यही स्थिति है। 12 लाख रुपये का भुगतान लंबित होने के कारण यह बंद है। हालांकि उन्होंने कहा कि छह लाख रुपये जारी हो चुका है। उम्मीद है कि इस या अगले सप्ताह तक एक्स-रे चालू हो जाएगा। आउट डोर में दवाओं की स्थिति भी बेहतर नहीं मिली। जो लिस्ट टंगी थी उसमें केवल 19 दवाएं शामिल थीं। पूछने पर दुष्यंत ने बताया कि रोज लिस्ट में दवाएं घटती बढ़ती रहती हैं। फिलहाल आउट डोर के लिए 34 में से 24 दवाएं उपलब्ध हैं। यही हाल इंडोर का भी है।
आज की ये खबर बहुत ही सटीक और अच्छी है अविनाश जी ऐसे हिं कुछ और मुद्दे हैं जो बक्सर के विकास में बाधक हैं