बक्सर खबर। शराब बंदी के नए कानून के तहत सिर्फ फोटो व वीडियो देखकर किसी को जेल भेजना उचित नहीं है। ऐसे में पुलिस को सावधानी बरतनी चाहिए। ऐसे ही एक मामले में उच्च न्यायालय ने बक्सर पुलिस को फटकार लगाई है। यहां के दो लोगों द्वारा दायर आपराधिक रिट याजिका पर सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई। सूत्रों ने बताया कि 24 सितम्बर को सुनवाई के दौरान एकलपीठ के न्यायाधीश अश्विनी कुमार सिंह ने बक्सर पुलिस की इस कार्रवाई पर हैरानी जतायी। उन्होंने संबंधित थानाध्यक्ष व अनुसंधानकर्ता को अपना पक्ष रखने के लिए तलब किया है। साथ ही इस मामले में किसी भी तरह की दंड़ात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी है।
सूत्रों की माने तो 30 जून को मुफस्सिल थाना की पुलिस ने ह्वाट्सएप पर प्राप्त फोटो के आधार पर चार लोगों की पहचान की। फिर उन्हें घर से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। चार दिन बाद उन्हें जमानत मिल गई। इनमें से दो लोग विनय कुमार और मनोज कुमार ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। उनका कहना है हमें गलत तरीके से फंसाया गया। दर्ज मुकदमा हटाया जाए। सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने बक्सर पुलिस के इस अजिबोगरीब एक्सन पर हैरानी जताई है। याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता के अनुसार उत्पाद अधिनियम की धारा 37 में वीडियो अथवा फोटो के आधार पर किसी को जेल भेजने का प्रवधान नहीं है। हालाकि अभी सुनवाई प्रक्रियाधीन है। इस लिए फैसले का इंतजार करना होगा। लेकिन, इस बीच पुलिस की परेशानी बढ़ी हुई है। तलब किए गए पुलिस कर्मी उत्पाद अधिनियम को पढ़ रहे हैं। क्या जवाब दिया जाए। क्योंकि न्यायालय ने यह भी कहा है। क्यों नहीं आप पर जुर्माना लगाया जाए।