शिवनाथ सिंह- एक युगपुरुष की भूली बिसरी महागाथा

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पुण्य तिथि पर विशेष
बक्सर खबर। बिहार की पावन और गरिमामयी रत्नगर्भा वसुंधरा ने अनेक महान विभूतियो को जन्म दिया है। मशहूर साहित्यकार शिवपूजन सहाय, फणीश्वर नाथ रेणु, देवकी नंदन खत्री, शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खान, महाकवि कालिदास, भोजपुरी के अमर कवी कबीर, जय प्रकाश नारायण, प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद, एथलीट शिवनाथ सिंह, भाजपा के भीष्म पितामह कैलाशपति मिश्रा, बाबू कुंवर सिंह, महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह आदि। इन्हीं विभूतियों में से एक थे शिवनाथ सिंह। सत्तर के दशक में शिवनाथ सिंह जैसा लम्बी दूरी का एथलीट एशिया में नहीं था।

पहले ट्रैक पर पांच किलोमीटर और दस किलोमीटर की दौड़ में एशिया के सभी एथलीटों को पछाड़ा फिर मैराथन में जुट गए। वह देश के पहले ऐसे धावक थे जो मैराथन के मामले में दुनिया में जाने जाते थे। यह बात अलग है कि उनका मैराथन के क्षेत्र में दुनिया में सर्वश्रेष्ठ स्थान 11 वां रहा। उन्होंने यह स्थान मांट्रियल ओलंपिक (1976) में हासिल किया था। शिवनाथ सिंह ने ट्रैक पर घायल हो कर गिरने के बावजूद समय निकाला था दो घंटा 16 मिनट 22 सेकेंड। इस बेजोड़ धावक ने जालंधर में 1978 में हुई मैराथन दौड़ में कमाल का प्रदर्शन करते हुए 2 घंटा 12 मिनट का समय निकाला। यह नया राष्ट्रीय रिकार्ड था। यह रिकार्ड आज भी भारतीय एथलीटों के लिए चुनौती बना हुआ है। इसके आसपास भी अभी कोई नहीं पहुंचा है। 1974 के एशियाई खेल में उन्होंने पांच हजार मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। बिहार के बक्सर जिले के मझरिया गाँव के रहने वाले शिवनाथ सिंह हमेशा नंगे पैर ही भागते थे। किट के नाम पर वह एक लोअर रखते थे। कच्ची सड़क, कीचड़ वाले खेत और बालू में दौड़-दौड़कर उन्होंने दमखम बनाया था।

शिवनाथ सिंह की उपलब्धियों और महानता का अनुमान आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि उनके बाद आज तक कोई भी दूसरा ओलंपिक मैराथन धावक भारत नहीं दे सका है। शिवनाथ सिंह हमेशा नंगे पांव ही दौड़ते थे और यह कोई सामान्य बात नहीं थी। शिवनाथ सिंह से पहले इथोपिया के महान धावक अबेबे बिकीला जिन्होंने 1960 के रोम और 1964 के टोक्यो ओलम्पिक में नंगे पांव दौड़ कर ही स्वर्ण जीता था का रिकॉर्ड समय 2:15:126 था जबकि इस बिहारी लाल 2:12:00 का रिकॉर्ड बनाया था। आज तक राष्ट्रीय स्तर पर भी कोई खिलाड़ी इस रिकॉर्ड के आसपास तक नहीं पहुँच पाया है।

सिर्फ मैराथन ही नही, 5,000 मीटर और 10,000 मीटर का शिवनाथ सिंह का एशियन रिकॉर्ड आज तक कोई कोई खिलाड़ी तोड़ने के आस पास भी नहीं गया है। एक महान खिलाड़ी होने के अलावा शिवनाथ सिंह बहुत उदार प्रवृत्ति के भी थे। उनके साथ के एक एथलीट ने उन्हें याद करते हुए बताया कि एक बार बिहार सरकार से मिले 10,000 रुपयों को उन्होंने अपने साथी खिलाड़ियों में बाँट दिया था। अपने साथी खिलाड़ी सतपाल सिंह को जो उस मैराथन में द्वितीय आये थे को उन्होंने आधी रकम दे दी थी। एथलीटों में राष्ट्रपति द्वारा विशेष सेवा मेडल पाने वाले बिहार झारखण्ड के वह पहले और आखिरी एथलीट हैं।

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उनके समकालीन रहे मझरिया के चन्द्रमा सिंह शिवनाथ सिंह को याद करते हुए बताते हैं: “उस जमाने में हमारे गाँव का आसपास के क्षेत्र में फुटबॉल में दबदबा था। लेकिन फुटबॉल के बजाय स्व. भरदुल सिंह की दो बेटियों और सात बेटों में पाँचवे स्थान जन्मे शिवनाथ ने दौड़ को अपनी प्रथमिकता बनाया। दौड़ के बल पर वह आर्मी में चुने गए। बाद में उन्हें टाटा स्टील ने अपने यहाँ मानद नियुक्ति दी।” पाठकों को बता दें जमशेदपुर(टाटा नगर) में उनके नाम पर कई स्मृतियां हैं। जिसे देखकर बिहार के लोग गौरव का एहसास करते हैं। गांव के ही विश्वामित्र सिंह कहते हैं “अपने समकालीन एथलीटों से बहुत ज्यादा और बड़ी उपलब्धियाँ हमारे गुदड़ी के लाल शिवनाथ सिंह जी के नाम है। लेकिन सरकारी उदासीनता और क्षेत्र के लोगों के आपसी मतभेद के कारण आज बक्सर क्या पूरे बिहार में ही शिवनाथ को भुला दिया गया है। जिस खिलाड़ी को बिहार के खेल स्पर्धाओं का प्रतीक होना चाहिए उनके नाम पर पूरे बिहार में कुछ भी उल्लेखनीय नहीं है। शायद इसी उपेक्षा के कारण अब तक देश को दूसरा शिवनाथ नहीं मिल पाया।”
शिवनाथ सिंह की उपलब्धियों और परमपराओं को सहेजने और पुनर्जीवित करने में लगे हुए रजनीकांत फाउंडेशन के सचिव और भोजपुरिया जनचेतना मंच के सरंक्षक सतीश चंद्र त्रिपाठी ने एक विशेष बातचीत में बताया कि 11 जुलाई के बाद शिवनाथ जी के जन्म का 75 वां वर्ष प्रारंभ होगा। हम लोग स्मृतियों को संजोने हेतु वर्ष भर अनेको कार्यक्रमों का आयोजन करेंगे। पिछली बार से भी बड़े और भव्य मैराथन का आयोजन होगा। जून 2003 को 57 वर्ष की अल्पायु में वह महान खिलाड़ी इस नश्वर दुनिया को अलविदा कह कर चला गया। तमाम सरकारी उदासीनता के बावजूद, मझरिया, बक्सर, बिहार और देश के करोड़ो खेलप्रेमियों के हृदय में शिवनाथ आज भी अमर हैं। लेकिन देश को दूसरा शिवनाथ मिले इसके लिए एक बार सबको पुनः कोशिश करनी होगी ताकि उनकी उपलब्धियों को एक बड़े पटल पर लाकर उन्हें उनका उचित सम्मान दिलाया जा सके।

  • शिवनाथ सिंह की कुछ उपलब्धियां*
    Ø 1970 में मिलिट्री पूर्व कमान में 5000 मीटर के दौड़ में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
    Ø 1971 क्रॉसकंट्री दौड़ में प्रथम स्थान के साथ ही नया राष्ट्रीय कीर्तिमान कायम किया तथा यही से देश में पहचान बनी।
    Ø 1972 रसियन इंडो एथलेटिक्स मीट में भारत के पांच शहरो में विदेशी प्रतियोगिताओं के साथ 5000 व 10000 मीटर में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
    Ø 1973 में प्रथम एशियन एथलेटिक्स मनीला, दोनों स्पर्धाओं में रजत पदक।
    Ø 1974 में 7वाँ एशियाड तेहरान में 5000 मीटर में स्वर्ण पदक नए एशियन कीर्तिमान के साथ एवं 10000 मीटर में रजत पदक।
    Ø 1975 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित एवं उसी साल 5000 मीटर के राष्ट्रीय चैंपियन भी रहे।
    Ø 1975 में द्वितीय एशियन एथलेटिक्स सियोल में दोनों स्पर्धाओं में रजत पदक
    Ø 1976 मांट्रियल ओलंपिक मैराथन दौड़ (42 कि0मी0) में ग्यारहवाँ स्थान। समय 2 घंटे 16 मिनट, पिछले ओलंपिक का यही समय था। एशिया का कोई भी धावक इस कीर्तिमान को आज तक नहीं तोड़ पाया है।
    Ø 1977 में राष्ट्रीय प्रतियोगिता के 10000 मीटर एवं मैराथन 42 किलोमीटर में प्रथम स्थान।
    Ø 1978 में 16वीं अखिल भारतीय खुली प्रतियोगिता में मैराथन का नया एशियन रिकॉर्ड घंटे 11 मिनट 59 सेकेण्ड बनाया साथ ही 10000 मीटर में प्रथम स्थान के साथ राष्ट्रीय कीर्तिमान 28 मिनट 56 सेकेण्ड स्थापित किया।
    Ø 1978 में पुनः बैंकॉक एशियाड में भाग लिया। 1978 में एडिनबर्ग, कनाडा में राष्ट्रमंडल खेलो में भारतीय दल का नेतृत्व किया।
    Ø 1979 में टिस्को की तरफ से राष्ट्रीय प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
    Ø 1980 के मॉस्को ओलम्पिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया
    Ø 1981 में राष्ट्रीय प्रतियोगिता के 5000 एवं 10000 मीटर वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
    Ø 1982 दिल्ली एशियाड खेलो में 10000 मीटर में भारत का प्रतिनिधित्व एवं पाँचवाँ स्थान प्राप्त किया।
    आलेख : विवेक हिन्दू

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