आध्यात्मिक इतिहास : मिथिला से हुई थी छठ व्रत की शुरुआत

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बक्सर खबर (पंडित नरोत्तम द्विवेदी) । छठ व्रत की महिला का जिक्र होता है तो बिहार की बात सामने आती है। यह लोक आस्था का महापर्व है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में इस संदर्भ में एक कथा आयी है–‘प्रथम मनु स्वायम्भुव के पुत्र प्रियव्रत ने पहली बार सूर्य षष्ठी व्रत, छठ पूजा का आयोजन किया था। इसकी शुरुआत बिहार के मिथिला (मिथिलांचल) क्षेत्र से हुई थी। इस लिये बिहार में इस पर्व की महत्ता सर्वाधिक है। और यहां इसका स्थान भी सबसे ऊंचा है। प्रियव्रत के समय से शुरु हुआ लोक आस्था का यह पर्व आज भी पुरानी परंपराओं के साथ विद्यमान है।

पौराणिक आख्यान और उसमें मिले उल्लेखों के मुताबिक प्रथम मनु स्वयंभु के पुत्र प्रियव्रत को कोई संतान नहीं हो रही थी। इसको लेकर वह काफी चिंतित रहते थे। तत्पश्चात महर्षि कश्यप की सलाह पर उन्होंने पुत्रेष्ठि यज्ञ का आयोजन किया। इसी दौरान उन्होंने सूर्य षष्ठी व्रत भी किया। इसके पश्चात उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और यह पर्व भी प्रचलित हो गया। तभी से कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को नहाय खाय, पंचमी को खरना और षष्ठी तिथि को छठ मनाया जाता है, और भगवान सूर्य के साथ-साथ सृष्टि की अधिष्ठात्री देवी प्रकृति की पूजा की जाती है।

छठ पूजा में बक्सर का नजारा 2021

ब्रह्म और शक्ति दोनों की होती हैं,एक साथ अराधना—
सूर्य षष्ठी वैसे तो प्रमुख रुप से भगवान सूर्य का व्रत है। किन्तु बिहार के इस व्रत में सूर्य के साथ षष्ठी तिथि का समन्वय विशेष महत्त्व का है। श्वेताश्वतर उपनिषद् में परमात्मा की माया को ‘प्रकृति’ और माया के स्वामी को ‘मायी’ कहा गया है। यह प्रकृति ब्रह्म स्वरुपा, मायामयी और सनातनी है। ब्रह्मवैवर्त पुराण प्रकृति खण्ड के अनुसार परमात्मा ने सृष्टि के लिये योग का अवलम्बन लेकर अपने को दो भागों में विभक्त किया। दक्षिण भाग से पुरुष और वाम भाग से प्रकृति का आविर्भाव हुआ। यहां ‘प्रकृति’ शब्द की व्याख्या कई प्रकार से की गयी है। प्रकृति के ‘प्र’ का अर्थ है प्रकृष्ट और ‘कृति’ का अर्थ है, सृष्टि अर्थात् प्रकृष्ट सृष्टि। दूसरी व्याख्या के अनुसार’प्र’ का सत्त्वगुण’ ‘कृ’ का रजोगुण और ‘ति’ का तमोगुण अर्थ किया गया है। इन तीनों गुणों की साम्यावस्था ही प्रकृति है—-
त्रिगुणात्मस्वरुपा या सर्वशक्तिसमन्विता।
प्रधानसृष्टिकरणे प्रकृतिस्तेन कथ्यते।।
( ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृतिखण्ड 1/6)

छठ पूजा में बक्सर का नजारा 2021

उपर्युक्त पुराण के अनुसार सृष्टि की अधिष्ठात्री यही प्रकृति देवी स्वयं को पांच भागो में विभक्त करती हैं–दुर्गा, राधा, लक्ष्मी, सरस्वती और सावित्री। ये पांच देविया पूर्णतम प्रकृति कहलाती है। इन्हीं प्रकृति देवी के अंश, कला, कलांश, और कलाशांश भेद से अनेक रुप है, जो विश्व की समस्त स्त्रियों में दिखाई देते है। मार्कण्डेय पुराण भी यही उद्घोष है—‘स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु।’
प्रकृति देवी के एक प्रधान अंश को ‘देवसेना’ कहते है, जो सबसे श्रेष्ठ मातृका मानी जाती हैं। ये समस्त लोकों के बालकों की रक्षिका देवी हैं। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का एक नाम ‘ षष्ठी’ भी है।
षष्ठांशा प्रकृतेर्या च सा च षष्ठी प्रकीर्तिता।
बालकाधिष्ठातृदेवी विष्णुमाया च बालदा।।
आयु:प्रदा च बालानां धात्री रक्षककारिणी।
सततं शिशुपार्श्वस्था योगेन सिद्धियोगिनी।।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खण्ड 43।4,6)

छठ पूजा में बक्सर का नजारा 2021

ब्रह्मवैवर्तपुराण के इन श्लोकों से ज्ञात होता है ,कि विष्णु माया षष्ठी देवी बालकों की रक्षिका एवं आयुप्रदा हैं।
जब प्रियव्रत को महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्ठि यज्ञ करने का परामर्श दिया। यज्ञ के फलस्वरूप महाराज को मालिनी नामक महारानी ने यथा अवसर एक पुत्र को जन्म दिया, किंतु वह शिशु मृत था। यह सुनकर प्रियव्रत के उपर मानो वज्रपात हुआ। वे शिशु के मृत शरीर को अपने वक्ष से लगाये प्रलाप कर रहे थे। तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी। आकाश से एक ज्योतिर्मय विमान पृथ्वी की ओर आ रहा है। उस विमान में एक दिव्याकृति नारी बैठी हुई थी। राजा द्वारा यथोचित स्तुति करने पर देवी ने कहा–मैं ब्रह्मा की मानसपुत्री षष्ठी देवी हूँ। मैं विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूँ एवं अपुत्रों को पुत्र प्रदान करती हूँ–‘पुत्रदाअ्हम् अपुत्राय’। इतना कहकर देवी ने शिशु के मृत शरीर का स्पर्श किया, जिससे बालक जीवित हो उठा। तभी से लोक में बालकों के जन्म, नामकरण, अन्नप्राशन आदि सभी शुभ अवसरों पर षष्ठी पूजन प्रचलित हुआ। आज भी शिशु के जन्म के छठे दिन षष्ठी पूजन, छठीहार गीत मंगल, लोकगीत, सोहर गाकर मनाने की परम्परा है। नवरात्र में षष्ठी कात्यायनी रुप में पूजी जाती है।

छठ पूजा के उत्साह से लबरेज श्रद्धालु

सूर्य और षष्ठी की एक साथ व्रत पूजन से कामनाओं की सिद्धि होती है। कुष्ठादि असाध्य रोगों का नाश होता है। ऐश्वर्य कामनाओं की पूर्ति एवं रोग नाश हेतु सविता को ध्यान मे रखा जाता है, वही पुत्र कामनाओं की पूर्ति एवं दीर्घायु हेतु षष्ठी देवी, छठि माई को ध्यान में रखा जाता है। विविध पकवानों पर सूर्य के रथ चक्र अंकित किये जाते है। फल, नारियल, ईख अनेक सामग्री से प्रथम अर्घ्य दान डूबते सूर्य को, और द्वितीय अर्घ्य दान उगते सूरज को दिया जाता है। विशेष मन्नत पूर्ति हेतु छह दीप वाला कोसी षष्ठी देवी को ध्यान में रखकर और बारह दीपो वाला भगवान भाष्कर सूर्य को ध्यान में रखकर भरा जाता है।

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