बक्सर खबर : भारत की सांस्कृतिक परंपरा में भले की मौत को गले लगाने की इजाजत रही हो, लेकिन कभी भी इन्हें कानूनी मान्यता नहीं मिली। लेकिन आज के दिन देश की सर्वोच्च अदालत इस पर कोई फैसला सुना सकती है। अदालत ने इस मामले में 12 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रखा था। आखिरी सुनवाई में केंद्र ने इच्छा मृत्यु का हक देने का विरोध किया था।
इच्छामृत्यु को लेकर सबसे पहले बहस साल 2011 में शुरू हुई थी। जब 38 साल से कोमा में रह रहीं केईएम अस्पताल की नर्स अरुणा शानबाग को इच्छा मृत्यु देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक पिटीशन दायर की गई थी।
अरुणा शानबाग के साथ 27 नवंबर 1973 में अस्पताल के ही एक वार्ड ब्वॉय ने रेप किया था जिससे वे कोमा में चली गईं। अरुणा की स्थिति को देखते हुए उनके लिए इच्छामृत्यु की मांग वाली एक पिटीशन दायर की गई थी, लेकिन तब कोर्ट ने यह मांग ठुकरा दी थी।