-भुगतान की बात सुनते ही कर्मचारी सीधे मुंह बात नहीं करते
बक्सर खबर। कोरोना काल का असर समाप्त नहीं हुआ है। प्रखंडों में बने क्वॉरंटाइन सेंटर जरुर बंद हो गए हैं। इस क्रम में शोषण का शिकार हुए शिक्षक परेशान हैं। क्योंकि उनके द्वारा खर्च राशि का भुगतान अंचल कार्यालयों से नहीं हो रहा। कितने का तो विभाग ने खर्च प्रतिवेदन ही स्वीकार नहीं किया। जिनका जमा हुआ है। उनसे कहा जाता है। जिले से डिमांड होगी। राशि आएगी, फिर भुगतान होगा। कर्मियों की मनमानी से परेशान कई शिक्षकों ने अंचल कार्यालय जाना छोड़ दिया है। क्योंकि उनके साथ वहां ड्यूटी पर तैनात कर्मी ऐसा व्यवहार करते हैं। जैसे कोई व्यक्ति उनके पास दान मांगने गया हो।
उदहारण स्वरूप राजपुर प्रखंड की बात करें तो यहां का हाल सबसे बुरा है। बड़ा प्रखंड होने के कारण यहां 100 से अधिक सेंटर खुले थे। लगभग 31 लाख रुपये का आवंटन भी मिला था। पूछने पर सीओ अवधेश कुमार भी यह बातें स्वीकार करते हैं। उनका कहना है, सभी विद्यालयों से बिल प्राप्त नहीं हुआ। खर्च का ब्योरा मिलने के बाद आवंटन की मांग होगी। राशि समाप्त हो चुकी है। इस वजह से भुगतान नहीं हो पा रहा। भुगतान कैसे करना है? यह पूछने पर उनका कहना है, शिक्षा विभाग को फार्मेट उपलब्ध करा दिया गया है। वहीं शिक्षा विभाग का कहना है। कोई फार्मेट नहीं मिला। न प्रारंभ में यह बताया गया। कितना खर्च करना है। हम जानते तो उसी आधार पर शिक्षकों को खर्च का निर्देश देते।
परेशान शिक्षकों का कहना है। कार्यालय में जाने पर कहते हैं। रोज-रोज कितना खर्च किए। उसका अलग-अलग बिल होना चाहिए। यह दुकान का पूर्जा बक्सर का काहें लगाए हैं। जिस गांव में स्कूल था वहां का क्यूं नहीं लगाए। पचास किलो आलू एक बार में काहे खरीद लिए। अब उनको कौन बताए हर गांव में वैसी दुकान नहीं है। जहां सभी सामान और मांगने पर बिल मिले। इतना सुनते ही कहते हैं स्टॉक पंजी कहा है? उनकी बाते सुन शिक्षक स्वयं को ठगा महसूस करते हैं और लौट आते हैं। इतना ही नहीं क्वॉरंटाइन सेंटरों पर विषम परिस्थिति में काम करने वाली रसोइया को भी श्रम के एवज में भुगतान नहीं मिला। उसके बारे में पूछने पर तो कोई जवाब ही नहीं देता। बात-बात पर शिक्षकों को वेतन बंद करने की धमकी देने वाला शिक्षा विभाग भी इस बारे में कुछ नहीं बोलता। क्योंकि उसे भय है, बड़ी मछली छोटी को खा जाएगी।