बक्सर खबर (माउथ मीडिया) । लोक सभा चुनाव भले ही संपन्न हो गए हैं। लेकिन, उसकी चर्चा अभी भी हो रही है। राजनीतिक दल भले ही उसकी समीक्षा जीस तरह से कर रहे हों। आम जन भी उसकी चर्चा चौक-चौराहे पर करते मिल रहे हैं। बीते दिन हम भी अपने मॉडल थाना चौक के पास फल की दुकान के सामने लोगों को ऐसी की चर्चा करते दूर से सुन रहे थे। तभी बतकुच्चन गुरू की आवाज सुनाई पड़ी। मैं उनकी तरफ लपक के बढ़ा। पास पहुंचा तो देखा वह कुछ लोगों से बात कर रहे थे। और पूरी रौ में थे, इस लिए उनको मैंने टोका नहीं। वे आस-पास खड़े लोगों को समझाने की मुद्रा में कह रहे थे। तू लोग फालतू का बहस कर रहे हो। जो हारा सो हारा, जो जीता सो जीता। इसमें परेशान होने की जरुरत क्या है। कभी-कभी परिवर्तन भी जरुरी है। रही बात किसी को दोषी कारार देने की तो इसके लिए स्वयं चोटी वाले जिम्मेवार हैं। तू लोग बदनाम किसी और मनई के कर रहे हो।
इतने में वहां खड़े एक युवक ने टोका, यह बात नहीं है। कुछ लोग जाति के प्रभाव में बह गए। आप इसको नकार नहीं सकते। बतकुच्चन गुरू उसे समझाते हुए बोले, अरे बबुआ तोरा खून में जोश ज्यादा है। तूम इ जान लो, उस सब खांटी होता है। ए बदे परेशान होवे के जरुरत ना हौ। तोहरे उमर के कुछ अबाटी ओहू तरफ हैं। जो मिला सब लबर-लबर किए हैं। ओ ना समझी का प्रभाव बहुते बूरा पड़ा है। देख लो बलिया, आरा, औरंगाबाद सबे साफ हो गया। एक छौरा बहुते जोश में था, ओकरा सब समझाया। केहू के बात नहीं माना, सोन में डूबा दिया, शाहाबाद के।
ऐही बदे हम कहते हैं, आपस में समझदारी से रहो। थोड़ा संयम रखो। यहां भी उहे हुआ है। एगो छौड़ा जनता के सेवा करने आया था। उधरो चौपट किया, इधरो चौपट किया, और यहां के मनबढ़ छौड़ा सब ले-ले कर के ढ़केल दिया पानी में। चलते हैं क्या समझे। इतना कहते हुए बतकुच्चन गुरू आगे निकल गए। मैं उन्हें राम सलाम भी नहीं कर पाया। लेकिन, सह सोच कर राहत मिली। चले चुनाव बाद ही सही, बतकुच्चन गुरू से मुलाकात तो हुई। (माउथ मीडिया बक्सर खबर का साप्ताहिक व्यंग कालम है। जो प्रत्येक शुक्रवार को प्रकाशित होता है। इससे जुड़े सुझाव आप हमें कमेंट के माध्यम से दे सकते हैं।)