‌‌‌पत्थर भी बोलते हैं : मोरारी बापू

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-जिस कर्म से अहंकार और दूसरे को ईर्ष्या आ जाए वह काम नहीं करना चाहिए
बक्सर खबर। पत्थर भी बोलते हैं। संत मोरारी बापू ने अध्यात्म के सिद्धांत पर यह प्रमेय सिद्ध कर के दिखाया। अपनी कथा में उन्होंन ऐसी प्रसंगों का वर्णन किया। जिसने यह सिद्ध कर दिया। पत्थर भी बोलते हैं। हालाकि आप सिर्फ हमारी पढ़कर यह राज नहीं समझ सकते। इसके लिए आपको बापू की कथा सुननी होगी। क्योंकि पत्थर की भाषा समझने का ज्ञान वही दे सकते हैं। बापू आज पांचवें दिन की कथा सुना रहे थे। उन्होंने शिव पार्वती का विवाह और राम जन्म तक के कुछ प्रसंगों का उल्लेख किया। कथा रस में पूरा प्रवचन पंडाल गोते लगा रहा था। जब वे शिव बारात की चर्चा कर रहे थे।

बापू ने कहा शिव जी कहते हैं। जिस कर्म को करने से स्वयं में अहंकार आ जाए अथवा दूसरे को ईर्ष्या हो जाए। वह कार्य नहीं करना चाहिए। बापू आज बुधवार को पूरी रौ में थे। उन्होंने भगवान शिव की चर्चा करते हुए अनेक जीवन सूत्रों का उपदेश दिया। शुभ विचार जहां से आएं उन्हें ग्रहण करना चाहिए। जीवन की गाड़ी सत्य, प्रेम और करूणा से चलती है। मनुष्य संपदा से स्नेह लगा लेता है। संपदा सर्प है, बगैर पैर वाली, जाते समय आवाज नहीं करती। फिसल के निकल जाती है। कथा जब राम जन्म पर पहुंची तो बापू ने कहा। प्रभु के जन्म लेने के पांच प्रमुख कारण हैं। पहला जय विजय को मिला श्राप, दूसरा सति संवाद का श्राप, नारद मुनी का श्राप, मनू-सतरुपा व पांचवों श्राप के कारण प्रताप भानू का रावण जन्म। इन कारणों से प्रभु इस धराधाम पर आए थे।

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