त्रेतायुग से चली आ रही पंचकोशी परिक्रमा की परंपरा

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पांच कोस की यात्रा में पांच ऋषियों के स्थल का श्रद्धालु करते हैं परिक्रमा
बक्सर खबर। मान्यता है कि जब भगवान श्री राम, महर्षि विश्वामित्र के साथ यज्ञ सफल कराने आए थे। तब ताड़का वध करने के बाद, नारी हत्या दोष से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने पांच कोस की परिक्रमा की थी। परिक्रमा के दौरान पांच ऋषियों से उन्होंने आशीर्वाद प्राप्त किया था। जिसे पंचकोसी परिक्रमा यात्रा के नाम से जाना जाता है। इस परंपरा को निभाने के लिए हर साल बक्सर में पंचकोसी परिक्रमा मेला लगता है। इस मेले में विभिन्न क्षेत्रों से सैकड़ों साधु – संत व हजारों श्रद्धालु आते है।इस वर्ष 20 नवंबर से यह परिक्रमा प्रारंभ हो रही है। पांचवें दिन 24 को लिट्टी चोखा का मेला लगेगा।

पंचकोशी परिक्रमा से जुड़ी खास बातें
पहला पड़ाव – अहिरौली, जहां गौतम ऋषि का आश्रम था। इस गांव में अब अहिल्या माता का मंदिर है। यहां पर पुआ पकवान, जलेबी का भोग लगाया जाता है।
दूसरा पड़ाव – नदांव, जहां नारद मुनि का आश्रम था। यहां अब नर्वदेश्वर महादेव का मंदिर और नारद सरोवर है। यहां पर खिचड़ी का भोग लगाया जाता है।
तीसरा पड़ाव – भभुअर, जहां भार्गव ऋषि का आश्रम था। अब यहां भार्गवेश्वर महादेव का मंदिर एवं भार्गव सरोवर है। यहां पर दही चूड़ा का भोग लगाया जाता है।
चौथा पड़ाव – नुआंव, जहां उद्दालक ऋषि का आश्रम था। अभी यहां पर अंजनी माता का मंदिर व अंजनी सरोवर है। श्रद्धालु यहां पर सत्तू मूली का भोग लगाते हैं।
पांचवां पड़ाव – चरित्रवन, जहां महर्षि विश्वामित्र का आश्रम हुआ करता था। अब दर्जनों मंदिर है और कुछ मंदिरों में विश्वामित्र जी की मूर्तियां है। अब लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां लिट्टी-चोखा का भोग लगाते हैं।

कथावाचक डॉक्टर रामनाथ ओझा

कथावाचक डॉ रामनाथ ओझा के अनुसार त्रेतायुग में भी धर्म विरोधी कार्य करने वाले लोगों का बोलबाला था। बक्सर में महर्षि विश्वामित्र की यज्ञ में खलल डाल रहे थे। हवन कुण्ड में मांस व हड्डी डाल देते थे। यज्ञ को सम्पन्न कराने के लिए विश्वामित्र जी ने चक्रवर्ती सम्राट राजा दशरथ के दरबार अयोध्या पहुंचे और भगवान श्री राम और लक्ष्मण जी को लेकर बक्सर आएं। प्रभु श्रीराम ने ताड़का नाम की राक्षसी का वध किया उसके उपरांत बक्सर में पहला सफल यज्ञ महर्षि विश्वामित्र ने किया था। बक्सर के आसपास पांच ऋषि रहते थे जो वे भी श्रापित थें। उनका उद्धार करने के लिए प्रभु श्री राम ने गुरु विश्वामित्र के साथ उनके आश्रम पहुंचे और उनका उद्धार किए। तभी से पंचकोसी परिक्रमा यात्रा का दौर प्रारंभ हुई और श्रद्धालु पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।

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