बक्सर खबर। हिन्दू धर्म में यज्ञशाला की परिक्रमा का बहुत ही विशेष महत्व है। जितना लाभ यजमान को यज्ञ करने से प्राप्त होता है। उतना ही पुण्य यज्ञशाला की परिक्रमा करने से श्रद्धालुओं को भी प्राप्त होता है। यज्ञ की फेरी लगाने का अपना एक विधान है। जिसे जानना जरुरी है। ज्योतिषाचार्य नरोत्तम द्विवेदी बताते हैं जिस तरह सही सवाल बनाने वाला छात्र सही सूत्र का उपयोग करे तो आसानी से सवाल का हल प्राप्त हो जाता है। उसी तरह उचित मार्ग अपनाने से अध्यात्मिक उर्जा का सीधा लाभ श्रद्धालु को आसानी से प्राप्त होता है।
कैसे करें परिक्रमा
बक्सर खबर। यज्ञ स्थल की परिक्रमा करने से पहले यह देख लेना चाहिए। उसके द्वार कहां – कहां बने हैं। अर्थात यज्ञशाला के चार द्वार होते हैं। जिन पर चार वेदों के नाम लिखे होते हैं। नियमानुसार यज्ञशाला में परिक्रमा मार्ग बना होता है। जिसमें पश्चिम दिशा से प्रवेश करना चाहिए। परिक्रमा पूरी होने पर वहीं से वापस लौटना चाहिए। अगर आप अनजान जगह पर है और आपको पता नहीं यहां पश्चिम कौन दिशा है। तो ध्यान रखें उस द्वार का नाम सामवेद द्वार होगा। चार वेदों में सामवेद भगवान विष्णु को सबसे अधिक प्रिय है। पूरब में त्रृगवेद द्वार, उत्तर में अथर्ववेद द्वार,दक्षिण में यजुर्वेद द्वार । सामवेद द्वार का रंग लाल होता है। चारो द्वार को अलग-अलग लकड़ी से बनाया जाता है।
कितनी बार करें परिक्रमा
बक्सर खबर। अधिकांश जगहों पर लक्ष्मीनारायण महायज्ञ ही होता है। इसके हवनकुंड चौकोर होते हैं। शास्त्रिय मान्यता के अनुसार लक्ष्मीनारायण यज्ञ की परिक्रमा एक बार, चार बार अथवा 27 बार की जाती है। सामान्यत: एक परिक्रमा अधिकांश लोग करते हैं। यह तरीका हर यज्ञ में अपनाया जाने वाला है। लेकिन शास्त्र के अनुसार भगवान विष्णु की चतुष्टक परिक्रमा को सबसे श्रेष्ठ बताया गया है। अगर कहीं देवी यज्ञ हो रहा है तो वहां भी एक परिक्रमा को श्रेयकर बताया गया है।