बक्सर खबर। यह संसार दुखालय है। जिस तरह पुस्तकों घर पुस्तकालय, भोजन पाने का स्थान भोजनालय उसी तरह यह जगत दुखालय है। यहां आकर यह कहना कि मुझे दुख क्यूं मिल रहा है। इसका कोई मतलब नहीं है। आप अच्छे कर्म करें, जिससे आपका भला हो। आप जैसा करेंगे, उसका फल आपको मिलेगा। क्योंकि कर्म फल सबको मिलना है। यहां जो आया है, उसे मरना है। यह तय है। उसी तरह दुख भी आपके साथ-साथ चलेगा। अगर आप संतुलन बनाकर चलेंगे। तो जीवन की गाड़ी चलेगी। फिर उन्होंने आरसी प्रसाद की वह रचना दुहराई। जीवन क्या है निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है। सुख-दुख के दो तीरों से चल रहा राह मनमानी है। यह बातें महान सन्यासी संत जीयर स्वामी जी महाराज ने गुरुवार को कथा के दौरान खिरी गांव में कहीं।
अपूज्या यत्र पूज्यन्ते
पूज्यानाम च व्यतिक्रमा।
त्रिणी तत्र प्रवर्तन्ते
दुर्भिक्षम,मरणम,भयम।
उन्होंने संस्कृत का श्लोक सुनाते हुए कहा। जहां पूजनीय लोगों का अनादर होगा और अपूज्य का आदर। वहां तीन चीजें प्रवेश कर जाती हैं। भूखमरी, मृत्यु और भय। बहुत से लोग समझाने पर भी इसका तात्पर्य नहीं समझते। उसका परिणाम आज सामने है। लगातार मनुष्य गलत दिशा में बढ़ रहा है। हर कार्य में अनीति, अन्याय, अधर्म का सहारा लिया जा रहा है। अगर ऐसा हर जगह होगा। तो वहां दुख स्वत: विद्यमान हो जाएगा। समझदारी इसी में संतुलन बनाकर चला जाए। जिसके लिए आवश्यक है। आप अपने अंदर सकारात्मक उर्जा को बढ़ाएं। जिसका सुगम मार्ग है, प्रभु की शरणागति। अन्यथा, विनाश गति लगातार बढ़ती जा रही है। स्वामी जी की कथा 16 फरवरी तक यहां चलेगी।