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समय आज भी उसी रफ्तार से चल रहा है। जो उसकी अपनी निर्धारित गति है। लेकिन वह अपने पीछे इतिहास के पन्ने छोड़ता जाता है। आज ही के दिन 26 जून 1539 में चौसा की जमीन पर युद्ध हुआ था। बंगाल से आगरा लौट रहे दिल्ली के बादशाह हुमायूं की सेना को शेरशाह की सेना ने यहां घेर लिया। युद्ध से लौट रही थकान से चूर हुमायूं की सेना शेरशाह की फौज का सामना नहीं कर पाई।
हुमायूं हार गया जिसके बाद शेरशाह ने अपना राज्याभिषेक फरीद उद्यीन शेरशाह के नाम से कराया। आज उसी युद्ध की वर्षी है। हुमायूं के आठ हजार सैनिक शहीद हुए, अथवा बंदी बना लिए गए। गंगा में कूद कर उसने अपनी जान बचाई। एक किश्ती ने उसकी मदद की। जिसे अपनी सत्ता वापस मिलने पर हुमायूं ने एक दिन का राजा बनाया। यह बातें आज इतिहास के पन्नों में दफन हैं। लेकिन चौसा में वह लड़ाई का मैदान अब टीले की शक्ल में है। जहां जिलाधिकारी संदीप पौंड्रिक ने एक छोटा स्मारक व सामुदायिक भवन बनवाया था। कोई वहां पहुंचे तो चौसा के इतिहास के परिचित हो सके। वक्त बदलता गया, यहां खुदाई भी हुई। बहुत से अवशेष मिले। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी उस स्थल को देखने गए। लेकिन, इससे चौसा को कोई लाभ नहीं हुआ। यह है आज की सरकारों का हाल और पर्यटक क्षेत्र बनने की चाह लिए चौसा का हाल।