बक्सर खबर। जो लोग समाज के कल्याण के लिए काम करते हैं। उनको अक्सर अपमान झेलना होता है। संत हों या सज्जन उन्हें इससे विचलित नहीं होना चाहिए। मान अथवा अपमान की चिंता नहीं करनी चाहिए। आप सभी को पता होगा। पड़ोस के वाराणसी शहर में पंडित मदन मोहन मालवीय जी रहते थे। उन्होंने वाराणसी हिन्दू विश्वविद्यालय खोलने का निश्चय किया।
मदद के लिए हैदराबाद के निजाम के यहां गए। हिन्दू विश्वविद्यालय की बात सुन वे बिदक गए। मालवीय जी ने उनके सामने अपनी झोली फैलाई तो उन्होंने अपने एक पैर की जूती उनकी झोली में डाल दी। ऐसा उन्होंने अपमान की नियत से किया। मालवीय जी को भी दुख हुआ। लेकिन, कुछ नहीं बोले और जूती ले वाराणसी आ गए। उनको यह समक्ष में नहीं आ रहा था इसका क्या करें।
फिर निर्णय लिया इसे नीलाम किया जाए। नीलामी शुरू हुई तो यह खबर निजाम तक पहुंची। दरबारियों ने कहा आपकी तो इज्जत नीलाम हो जाएगी। अंतत: उस निजाम को अंतिम बोली की रकम अदा कर जूती लेनी पड़ी। आज वह हिंदू विश्वविद्यालय उत्तर भारत का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है। न जाने कितने रोगी और मरीज वहां जाते हैं। हजारों विद्यार्थी अपना जीवन सवार रहे हैं। इस लिए समाज के कल्याण की सोच रखने वालों को मान-अपमान से विचलित नहीं होना चाहिए।
– पूज्य जीयर स्वामी जी के श्री मुख से