त्रिपुरा के बाद देश में शुरू हुई मूर्तियों को तोडऩे की सियासत

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बक्सर खबर: करीब सौ साल पहले अपने कामयाब विचारों से दुनिया को बदल देने वाले ब्लादिमीर ईवानोविच लेनिन को लेकर रूस, जो कि उनका देश रहा है, में नहीं बल्कि भारत की सियासत में भूचाल उठ खड़ा हुआ है। त्रिपुरा की सत्ता पर भाजपा के कब्जे के साथ ही देश में एक नए तरह की राजनीति शुरू हो गई है।

पिछले 48 घंटे में टूटी कई जगह मूर्तियां

सत्ता के मद में राष्ट्रवाद का झंडा उठाने वाले त्रिपुरा के बेलोनिया टाउन के कॉलेज स्क्वायर में पांच साल पूर्व स्थापित लेेनिन की प्रतिमा को पांच मार्च को ध्वस्त कर दिए। ये वही लेनिन हैं जिनके विचारों के मरने की घोषणा ये राष्ट्रवादी लगातार करते रहे हैं। ऐसे में इनसे ये सवाल पूछा जाना तो बनता ही है कि जो विचार पूरी दुनिया में मरने के कगार पर है, उसके प्रतीक से इन्हें इतना डर क्यों लग रहा?

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दरअसल बात अगर लेनिन की प्रतिमा तक ही ठहर जाती तो हो सकता था कि यह आग फैलने से बच जाती। लेकिन लेनिन की प्रतिमा के ढहाने के अगले ही दिन यानी छह मार्च की रात में तमिलनाड़ु के चेन्नई से 130 किलोमीटर दूर वेल्लोर में पेरियार की मूर्ति को तोड़ दिया गया। यही नहीं उसी रात मेरठ के मवाना में डा. भीमराव अंबेडकर की मूर्ति को भी तोडा दिया गया। अभी यह बवंडर थमा भी नहीं था कि सात मार्च को इसके विरोध में पश्चिम बंगाल में इसकी प्रतिक्रिया शुरू हो गई। कोलकाता के टालीगंज के केवाईसी पार्क में स्थित श्याम प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा को तोडऩे के साथ ही कुछ लोगों ने कालिख पोत दी। वहां एक पोस्टर भी छोडा गया है जिस पर लिखा यह लेलीन का प्रतिशोध है। इस घटना की प्रतिक्रिया किस रूप में हमें देखने को मिलेगी, अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगा। जिस तरह बूतों को नष्ट करने का सिलसिला जारी है उसको देखते हुए कहा जा सकता है कि यह परंपरा अच्छी नहीं है। इस बीच देश में जिस तरह के हालात बनते जा रह हैं उसको देखते हुए लोग यही कहेंगे कि इंसानों से नहीं साहब, बूतों से डर लगता है।

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