बक्सर खबर (माउथ मीडिया)। शुक्रवार का दिन आया तो बतकुच्चन गुरू की याद आई। उनसे मिलना तो मुश्किल था। क्योंकि इन दिनों गांव में समय जो कट रहा है। इस वजह से उनको फोन मिलाया। जय राम जी कि, कहते हुए उनसे दुआ-सलाम किया। उन्होंने मेरा हाल-चाल नहीं पूछा। तपाक से सवाल किया। गुरू हमरा इ बताओ त्यागी मतबल का होत है? मैं कुछ बोलता उससे पहले उनकी आवाज फिर सुनाई पड़ी। वे बोले जा रहे थे। वैसे भी वे किसी की सुनते नहीं हैं। जो कहना होता है, एक सांस में कह जाते हैं। बोले जा रहे थे।
कलयुग में ए शब्द का मतबल बदल गवा है। हमका लगता है अइसन मनई लोग अब धरती से खतम हो रहा है। नाम कछु रखता है, काम कछु करता है। कुछ मिला तो समाज के लूटे पर लगा है। अपन मुनाफा के अलावा उ सब के कुछ दिखता न है। उ का कहते है डेवलपमेंट अप्पन होता रहे। दूसरे का चिंता ओके नहीं है। उनकी सारे बाते मेरे सर के उपर से जा रहीं थी। सो मैंने उनको टोका। अरे गुरू, क्या हुआ कुछ बताएंगे, किसी बात कर रहे हैं।
मेरी बात सुन वे रुके। फिर हंस के बोले हम तोके का बतावें गुरू। तु ही हमरा बताव। कवनो अइसन मिला तोहके मिला जौन त्यागी होवे। मैं उलझन में पड़ गया। क्या सचमुच ऐसे लोग समाज में नहीं रहे। मैंने यह सोचते हुए कहा, जरुर होंगे, समाज में हर तरह के लोग होते हैं। मेरी बात सुन वे हंसने लगे, यह कहते हुए फोन काट दिया। कवनों त्यागी तोहके मिले तो हमरा जरुर बताइएगा। हम ओकर दर्शन करेंगे। बतकुच्चन गुरू का फोन तो कट गया, लेकिन मेरी दिमाग की घंटी अब भी बज रही है। कहां मिलेगा त्यागी …।
नोट- माउथ मीडिया बक्सर खबर का साप्ताहिक व्यंग कालम है। जो प्रत्येक शुक्रवार को प्रकाशित होता है। आप अपने सुझाव हमें कमेंट के माध्यम से दे सकते हैं।