बिहार तीन लोकों की कल्पना का आधार है। यह पाताल लोक है। बलिया बलि राजा के नाम पर बसा है। वाल्मिकी रामायण में जितनी प्रशंसा विश्वामित्र ने राम से की है। वह इसकी समृद्धि का आधार है। इस इलाके में हर आदमी अपनी नदी के साथ जन्म लेता है। यहां सबसे अधिक नदियां है। विहार सरकार की पर्यावरण चेतना का सबूत है कि उसने फ़रक्का को तोडने और गंगा में पानी छोडने की मांग की है। निश्चित रूप से दो मांगे बडी मांगे है ।इन मांगो के आधार पर उनकी चेतना के स्तर को समझा जा सकता है।
समय गुजर जाने के बाद यह भी समझ में आया कि वे सारी कारवाईयां थी, अखबार के पन्नों पर छपे शब्द थे, उनमें आत्म बल नहीं था। उसमे चिंता नहीं थी,लडने का साहस नहीं था। कुछ कर रहे है दिखाने के लिए आयोजन और करोडो का ब्यय दिखता। सत्ता का यह चरित्र तब समझ में नहीं आया जब एक ओर फ़रक्का को तोडने की बात करती दूसरी ओर बागमती को बांधने की । जब बात अर्सेनिक की आती है तो विहार सरकार का चरित्र
भयानक दिखने लगता है।
विहार सरकार ने ही जो अर्सेनिक मैप जारी किया है उसमें दस साल के भीतर क्या अंतर आया है,उसे क्यों नहीं दिखता। धरती का जल स्तर किस गति से नीचे जा रहा है यह चिन्ता के केन्द्र में कहीं नहीं दिखता और मुंबई का मैरिन ड्राईव निर्मित होता हुआ दिखता है। आपने शराब बंद कराया अच्छा किया। दहेज उन्मूलन कराया अच्छा किया। केश की रक्षा जरूरी है पर तब नहीं जब गर्दन कट रही हो।
हमारे पानी का क्या किया।
भागलपुर के बाद हमारी हवा सांस लेने लायक न बची, हमारे हवा का क्या किया। बिहार की मिट्टी अपनी उत्पादकता खो रही है। विहार प्रलय के कागार पर खडा है। जिस गति से पानी का दोहन हो रहा है यह कितने दिनों तक चलेगा।
सोचता हूं कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है।
अभी जब मैं दिल्ली में यमुना पर काम कर रहा था मेरी समझ में आया कि नदियां लूट का केन्द्रक बन चुकी है। इसके दो कारण समझ में आए।
पहला लोगों की उपेक्षा और दूसरा सरकार की इच्छा शक्ति का आभाव।
बिहार का समाज सोया हुआ है। पहले समाज जागता है फ़िर सरकार जागती है। समाज जाग जाए तो जागना सरकार की मजबूरी बन जाती है। एक वैज्ञानिक मित्र से मैंने पिछले दस साल में जल स्तर और अर्सेनिक के स्तर को आधार बना कर पूछा कि अगर यह हाल रहा तो बिहार कब तक चलेगा। बहुत बुरा लगा यह सुनकर कि अगले पचास सालों में विहार के कई इलाकों का यह हाल हो जाएगा कि वहां कोई नहीं रहेगा। बिहार प्रलय के मुहाने पर खडा है। सरकार का चरित्र समझ में आ गया, उसे बिहार को बचाने में कोई रूचि नहीं है।
यह कठिन समय है।
जब सरकारें सो जाय तो लोगों को जागना होता है।
जब सरकारें भी सो जाय और लोग भी सो जाय तो…।
(साभार: निलय उपाध्याय के फेसबुक वाल से)