-चार माह बाद भी दोहरे हत्याकांड से नहीं उठा पर्दा
बक्सर खबर। अपराधियों ने दो लोगों की हत्या एक साथ कर दी। घटना को चार माह गुजर गए। लेकिन, उनकी हत्या से पर्दा उठना तो दूर। परिवार को किसी तरह की मदद भी नहीं मिली। तब मौके पर पहुंचे एसडीओ और डीएसपी ने आश्वासन दिया था। पीड़ित परिवारों को मदद मिलेगी। लेकिन, प्रशासन का आश्वासन भरोसे में तब्दील नहीं हो सका। यह घटना राजपुर थाना के गैधरा गांव से जुड़ी है। 15 जून को रामपुर बैंक से लौट रहे सीएसपी संचालक कृष्णानंद पाठक और उनके ही गांव के नियोजित शिक्षक सुशील पाठक को अपराधियों ने गोली मार दी। तब पुलिस ने कहा था। इसके पीछे कोई अदावत समझ में आ रही है। क्योंकि मामला लूट का नहीं लगता। लेकिन, घटना लूट ही थी।
क्योंकि दोनों लोग रामपुर बैंक से रुपये निकाल कर घर लौट रहे थे। एक ही बाइक पर दोनों सफर कर रहे थे। अपराधियों ने बीच रास्ते में उनकी बाइक रोकी। रुपये छीनने के दौरान विवाद हुआ और उन लोगों ने दोनों को जान से मार दिया। अपराधियों ने तब पांच गोलियां चलाई थी। दोनों की मौत मौके पर हो गई। ग्रामीण जुटे प्रशासन ने उन्हें समझाया। शव को अस्पताल लेकर जाना होगा। पोस्टमार्टम आज नहीं हुआ तो कल होगा। दोनों ही परिवार के लोग सभ्य थे। किसी ने सड़क जाम और धरना प्रदर्शन नहीं किया। वजह प्रशासन ने मदद का जो आश्वासन दिया था वह वादा ही रह गया। पुलिस भी चार माह से अपराधियों की तलाश कर रही है। हत्या क्यो हुई और किसने की ? इसका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं। कृष्णानंद व सुशील की बेवाएं तो यही कहेंगी। पुलिस सिर्फ बातें बड़ी करती है। उसका काम वैसा नहीं है। एक दिन पहले लंबे अंतराल के बाद राजपुर पुलिस ने इसी इलाके में हुई पिकअप लूट की घटना का उदभेदन किया। तो गैधरा गांव के लोगों ने कहा अगर पुलिस ऐसा कर सकती है। तो हमारे गांव के लोगों की हत्या करने वालों का पता क्यूं नहीं लगाती। शिक्षक के भाई तारकेश्वर पाठक ने कहा हम लोग कई बार थाने का चक्कर लगा चुके हैं। लेकिन, पुलिस से कोई मदद नहीं मिली। वहीं सीएसपी संचालक के भाई भानू पाठक ने कहा कि मैं तो कई बार एसपी से मिला। लेकिन, पुलिस के हाथ अभी तक कोई सुराग नहीं लगा है। हांलाकि यह कोई नई बात नहीं है। राजपुर में जब हत्याएं होती है। अथवा लावारिस हाल में शव मिलते हैं। तो उनका राज नहीं खुलता है। लक्ष्मणपुर में हुई पांच हत्याएं, एक वर्ष के दौरान जगह-जगह मिले युवतियों के शव की पहचान। सबकुछ तो पर्दे में ही है।