120 वर्षीय परम संत के निधन पर गांव रेंका में छाई मायूसी

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– रामरेखा घाट पर जुलूस की शक्ल में पहुंचे श्रद़धालु, दी गई संत को जलसमाधि
-निम्बार्क सम्प्रदाय के संत ने साहित्य,दर्शन औऱ व्याकरण पर लिखी है कई रचना
बक्‍सर खबर। गाजीपुर जिला स्थित रेंगा मठियां के मठाधीश यमुना दास जी महाराज का पार्थिव शरीर भक्‍तों की जुलूस के साथ आज शुक्रवार को रामरेखा घाट लाया गया। यहां उनको जलसमाधि दी गई। उनके देहावसान की मनहूश खबर मिलते ही शुक्रवार को उनके गांव रेंका में मायूसी छा गई।
संत यमुनादास जी महाराज गांव के सूर्यकुमार उपाध्‍याय के पुत्र थे। दो भाईयों में बड़े यमुनादास का बचपन से ही रूझान धर्म और अध्यात्म की ओर हो गया। निम्‍बार्क सम्‍प्रदाय से जूड़कर ये यमुनादास बने तथा संत साहित्‍य दर्शन और व्‍याकरण पर बहुतेरे ग्रंथ लिखे।  इनके शिष्‍यों की सूची में विद्वानों की संख्‍या काफी है। इनके एक शिष्‍य सनातन शक्तिपीठ के अध्‍यक्ष आचार्य भारत भूषण पांडेयजी का कहना है कि परम पूज्‍य गुरूदेव के ब्रह्मलीन होनें से विद्वत समाज को बड़ी क्षति हुई है। गांव के वीरेन्‍द्र उपाध्‍याय, विश्‍वामित्र पांडेय एवं रासबिहारी पांडेय सहित कई ग्रामिणों ने परम संत के ब्रह्मलीन होनें पर चिंता व्‍यक्‍त किया है। जिले के महान संत तपस्वी श्री यमुना दास जी महाराज का 120 वर्ष की अवस्था में देहावसान हुआ। महान संत के बारे में बताते हुए उनके शिष्य रहे कथावाचक आचार्य भारत भूषण जी महाराज ने बताया कि स्वामी जी महाराज का जन्म वर्ष 1902 में जिले के रेंका पांडेयपुर गांव में हुआ था। स्वामी जी ने पॉच साल की आयु से ब्रम्हचर्य धारण करते हुए सन्यास का मार्ग वरण कर लिया। उन्होंने अपने जीवन काल में अपनी सारी संपत्ति उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के रेंगा स्थित मठिया के नाम कर दी थी। उत्तर प्रदेश में दो महाविद्यालयों के साथ-साथ बिक्रमगंज में मौनी बाबा यमुनादास लखराजो देवी महिला महाविद्यालय के नाम से एक महाविद्यालय की स्थापना भी किया। उनके निधन से संपूर्ण जगत को अपूरणीय क्षति हुई है।

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