बक्सर खबरः कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी गोवत्सद्वादशी के नाम से जानी जाती है। मान्यता है कि गोवत्स द्वादशी पर गाय माता की पूजा करने पर साल भर माँ लक्ष्मी की कृपा भी बनी रहती है। इस दिन गाय के साथ उसके बछड़े की पूजा करने का विधान है । इस व्रत को करने से व्रती सभी सुखों को भोगते हुए अन्त में गौ के जीतने रोएँ हैं, उतने वर्षों तक गोलोक में वास करते है।सतयुग की बात है जब महर्षि भृगु के आश्रम में भगवान् शंकर एक बूढ़े ब्राह्मण का वेश बनाकर हाथ में ड़डा लिये काँपते हुए उस आश्रम में आये। उनके साथ सवत्सा गौ के रूप में जगन्माता पार्वती जी भी थी। वृद्ध ब्राह्मण बने भगवान् शंकर महर्षि भृगु के पास जाकर बोले हे मुने। मैं यहाँ स्नानकर जम्बू क्षेत्र में जाऊँगा और दो दिन बाद लौटूँगा,तब तक आप इस गाय की रक्षा करें। ब्रह्मवादी ऋषियों ने उनका पूजन किया। उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी थी। इसलिए यह व्रत गोवत्सद्वादशी के रूप में प्रारंभ हुआ। आज भी माताएँ पुत्ररक्षा और संतान – सुख के लिये इस व्रत को करती हैं ।