बक्सर खबर : सोमा घोष संगीत की दुनिया का वह नाम है। जिसे भारत सरकार ने पद्मश्री सम्मान से नवाजा है। इनका एक खास परिचय यह भी है कि वे भारत रत्न उत्साद बिस्मिल्लाह खान की दतक पुत्री भी हैं। बनारस की रहने वाली मशहूर कलाकार मंगलवार को डुमरांव पहुंची। उत्साद की 101 वीं जयंती पर उनका आगमन सबके लिए खास रहा। घोष ने कहा बिहार साधना व डुमरांव इबादत की भूमि है। उन्होंने राजगढ़ में स्थित बिहारी मंदिर में जाकर भगवान व उस स्थान के सामने मत्था टेका जहां कभी उत्साद अपने दादा के साथ रियाज किया करते थे।
लिख रही हैं बाबा एंड मी पुस्तक
बक्सर : खुद की बायोग्राफी लिख रही सोमा घोष ने बताया कि वह स्वयं पुस्तक लिख रही हैं। जिसका नाम बाबा एंड मी है। घोष उत्साद का बाबा के नाम से ही संबोधित करती हैं। क्योंकि उनकी मुलाकात 2001 में कार्यक्रम के दौरान हुई थी। रिश्ता जुड़ा स्नेह बढ़ता गया। पता चला उनकी बेटी फातिमा जिसे बाबा बहुत प्यार करते थे। अब नहीं रहीं, बेटी के हिस्से का सारा प्यार उन्होंने घोष को दिया। तब से वे उनके लिए बाबा बन गए।
राजधरानों ने बख्शी है संगीत को इज्जत
बक्सर : भारत वर्ष में संगीत को जो शोहरत मिली। वह राजघरानों की देन है। तब के जमाने में राजदरबार में संगीतज्ञों को स्थान मिलता था। जैसे-जैसे युग बीता। सम्मान घटता गया। अंग्रेजी शासन के बाद तो इसमें तेजी से गिरावट आई। मौजूदा वक्त तो इतना अश्लील हो गया है। जिसने भारती संगीत व वाद्य दोनों को समाप्त करने की ठान ली है। हम जैसे कलाकार इससे बचाने में जुटे हैं। यह बातें उन्होंने डुमरांव महाराज कमल बहादुर सिंह से मुलाकात के दौरान कहीं। अपनी पुस्तक के लिए इसे यादगार पल मानते हुए घोष ने कहा डुमरांव उनके लिए इबादत की धरती है। आज बाबा की 101 वीं जयंती पर यहां आने का मौका मिला। इसमें मुरली मनोहर श्रीवास्तव का बहुत बड़ा योगदान है। जिनकी पुस्तक को पढऩे के बाद उन्होंने डुमरांव के बारे में जाना। मौके पर मौजूद युवराज चन्द्र विजय सिंह ने कहा राज परिवार की गौरव शाली परंपरा व उससे जुड़े उत्साद बिस्मिल्लाह खान ने डुमरांव को सम्मान दिया है। इस पर हमें और जिले वासियों को गर्व है। मौके पर कुमार शिवांग विजय सिंह भी मौजूद थे।
डीएवी स्कूल में हुआ सम्मान
बक्सर : संगीत जगत की महान विभुति के डुमरांव आगमन पर डीएवी स्कूल ने अपने विद्यालय में आमंत्रित कर सम्मानित किया। वहां का माहौल व वैदिक परंपरा देख उन्होंने कहा विद्यालय में संस्कार की शिक्षा सबसे जरुरी है। उनके स्वागत में प्राचार्य घनश्याम कुमार सहाय, अर्चना कुमारी, ज्योति कुमारी, प्रतिमा कुमारी, लाल बहादुर, प्रशुन राय, शैलेन्द्र श्रीवास्तव, चंदन ओझा आदि शिक्षक व छात्र शामिल हुए।
अचानक यह सबको संघ की जरूरत कैसे आ पड़ी।उधर पप्पू बोल रहे हैं ,इधर बपस्वी भी।संघ की तरह संगठन खड़ा करना है।पता भी है , संघ क्या है?और हज़ारों -हजार लोगों के त्याग बलिदान पर इसकी नींव पड़ी है ।कुर्सी के लिए धर्म, समाज, देश और जाति बेचने वालों गिद्धों तुम समझ ही नहीं पा रहे हो कि बक क्या रहे हो।
संघ किरण घर-घर देने को अगणित नंदा दीप जले।
मौन तपस्वी साधक बनकर हिमगिरी सा चुपचाप गले।
और
स्वर्णमयी लंका न मिले माँ,अवधपुरी की धूल मिले
सोने में काँटे चुभते है ,मिट्टी में है फूल खिले।
और
तेरा वैभव अमर रहे माँ हम दिन चार रहे न रहे।