पत्रकारों को पैसा मिला न पहचान : अजय मिश्रा

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बक्सर खबर : कस्बाई इलाके में पत्रकारिता करना मुफलिसी है। बात तब की करें या अब की। हालात में बहुत बदलाव नहीं आया। इस बीच मीडिया में विज्ञापन युग आया। जिसने पत्रकारों को संभलने का मौका तो दिया। बावजूद इसके मुफलिसी कायम है। इलेक्ट्रानिक मीडिया तो अवसर वादी पत्रकारिता का गढ़ है। जब मौका आता है, पूछ बढ़ जाती है। अन्य मौके पर सिर्फ गिनने के लिए संवाददाता है। बात अगर प्रिंट मीडिया की करें तो यहां कार्यालय प्रभारी हो या प्रखंड के संवाद सूत्र। सबके लिए विज्ञापन मांगना मजबूरी है। आप इससे पीछे रह गए तो न कंपनी पसंद करेगी। न आपके घर वाले। इस दौर की पत्रकारिता के एक और होनहार पत्रकार हैं अजय मिश्रा। 1990 का वह दशक था। सुबह तीन पत्रकार स्टेशन पर दिख जाते थे। अजय मिश्रा, मुखदेव राय व रामइकबाल ठाकुर। स्टेशन पर अखबार ट्रेन से आता था। फिर घंटो खबरों का मुआयना व चाय की चुस्की। इस तिकड़ी को चाय पिलाने वाले अजय मिश्रा। उन्होंने कभी अपनी शान  से समझौता नहीं किया। उस दशक में जहां सभी पत्रकार पैदल चला करते थे। मिश्रा जी एकलौते पत्रकार थे। जिनका एलएमएल वेस्पा स्कूटर स्टेशन पहुंचता था। अर्थात पत्रकारिता की शुरुआत स्टेशन से होती थी। सुबह से पत्रकार अपना रुपया लुटाना शुरु करते थे। बक्सर खबर ने अपने साप्ताहिक कालम इनसे मिलिए के तहत बात की। प्रस्तुत है उसके कुछ अंश।

चर्चा में रहे अजय मिश्रा
बक्सर : कभी लालकृष्ण आडवाणी की सुरक्षा तो कभी नरमुंड की तस्करी की खबर लिख चर्चा में रहने वाले अजय मिश्रा को अपराधिक व राजनीतिक खबरें लिखना पसंद था। 1994 में उन्हें प्रेस क्लब आफ इंडिया के सेमिनार में दूसरा पुरस्कार मिला। आगरा में आयोजित कार्यक्रम का विषय था सामाजिक परिवेश में समाज के प्रति पत्रकारिता का दायित्व। इस पल को वे आज भी याद करते हैं। इस बीच 2008 मैं बक्सर पत्रकार संघ ने भी उन्हें पत्रकार भूषण सम्मान से नवाजा। डीएम अजय यादव ने यह पुरस्कार उन्हें प्रदान किया।
पत्रकारिता जीवन
बक्सर खबर : बात वर्ष 1986 की है। अजय मिश्रा बिहार के हजारीबाग (आज झारखंड) में प्रभात खबर से जुड़े। वहां अखबार के ब्यूरो रहे। वर्ष 1991 में अपने गृह नगर बक्सर आ गए। यहां नवभारत टाइम्स उन दिनों प्रमुख अखबार हुआ करता था उससे जुड़े। 1993 में आज दैनिक के लिए लिखने लगे। इस बीच 1990 से ही समाचार एजेंसी युएनआई के लिए लिखते रहे। उनका यह सफर आज भी जारी है। इस बीच वर्ष 2000 में दैनिक जागरण बिहार आया। मिश्रा जी उससे जुड़ गए। दैनिक जागरण का पहला कार्यालय स्टेशन रोड के ओड़ी कोठी में उन्होंने ने ही प्रारंभ किया। 2005 में जागरण का मौडम कार्यालय बक्सर में खुला। बंध कर काम करना अजय मिश्रा को गवारा न था। जागरण से साथ छूट गया।

छात्रों का पत्रकारिता पढाते अजय मिश्रा

कहते हैं अजय मिश्रा
बक्सर : पत्रकार हमेशा से अपने सम्मान के लिए जुझारु होते हैं। बावजूद इसके वे अपना हक कभी नहीं पा सके। कंपनियों ने न तो उन्हें उचित पारिश्रमिक दिया न पहचान दी। पत्रकार खुद धक्के खाते रहे। अपनी पहचान बनाते रहे। उन्हें पहचानपत्र तक नहीं मिलता। जिससे वे अपने आप को संवाददाता होने का दावा कर सकें। किसी को मिला भी तो अंशकालिक के तगमें के साथ।
युवाओं को दे रहे हैं पत्रकारिता का ज्ञान
बक्सर : फिलहाल अजय मिश्रा अपने आवास पर मास कम्यूनिकेशन (पत्रकारिता) करने वाले छात्रों को पढ़ाते हैं। विभिन्न विश्व विद्यालयों से पढ़ाई करने वाले छात्र उनके यहां अनुभव लेने आते हैं। यहां हम यह कह सकते हैं। जिले में वे इकलौते ऐसे पत्रकार हैं जो पत्रकारिता की पाठशाला चलाते हैं।
व्यक्तिगत जीवन
बक्सर : अजय मिश्रा का जन्म 25.6.64 को हरीहर मिश्रा के चौथे पुत्र के रुप में हुआ। उनका बचपन बंगला में गुजरा। पिता स्व. हरीहर मिश्रा सेल कंपनी में काम करते थे। वहीं से उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। इस बीच पिता जी का तबादला हजारीबाग हो गया। जहां कोलंबस हजारी बाग कालेज से उन्होंने 1985 में स्नातक उत्तीर्ण किया। इस तरह बंगाल में पले मिश्रा आज के झारखंड में युवा हुए। दिल्ली विश्व विद्यालय से पत्रकारिता की डिग्री ली। वर्तमान समय में नया बाजार प्रखंड कार्यालय के समक्ष आवास बनाकर रहते हैं। मूल रुप से इटाढ़ी प्रखंड के खनिता बसांव के रहने वाले हैं।

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