फुटकर पत्रकार शब्द सुन रह गया हैरान : दया

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बक्सर खबर : मन में दया, मिजाज से शंकर। इस बार आपके सामने हैं दयाशंकर। डुमरांव का रहने वाला यह पत्रकार हालात का शिकार है। सोचा था कमजोर वर्ग से आता हूं। पत्रकार बनुंगा तो घर परिवार का रुतबा बढ़ेगा। पर हुआ विपरीत ही। जेब तो पत्रकारिता के नशे में ऐसी फटी कि घर वाले भी हेय नजर से देखने लगे। फिर भी हिम्मत ने साथ नहीं छोड़ा। इस बीच मजीठिया आयोग की सिफारिश ने मीडिया घरानों को बेचैन कर दिया। तभी प्रबंधन ने फुटकर पत्रकार के एग्रीमेंट पर अपने संवाददाताओं का हस्ताक्षर लिया। एक हजार रुपये में काम करने वाले दयाशंकर को उस दिन पता चला। आप पत्रकार नहीं। आयाराम-गयाराम है। जेब तो पहले ही फट चुकी थी। पत्रकार बनने का शौक भी जाता रहा। पेट खाली होने लगा। पिता जी चल बसे। हालात ने जमीन पर पटक दिया। कलम छोड़ दया अब गोला रोड़ में समोसा की दुकान चलाते हैं। परिश्रम का फल मीठा होता है। इस लिए दया सौ दो सौ रुपए कमाकर घर जाते हैं। आज इनके चेहरे पर पत्रकारिता का रौब नहीं खुशी की चमक दिखाई देती है। अपने साप्ताहिक कालम इनसे मिलिए के संदर्भ में दया से बात की। उन्होंने जो सुनाया वह उस गीत की तरह है —

तआरुफ रोग हो जाए तो उसे भुलना बेहतर
तअल्लुक बोझ बन जाए तो उसको तोडऩा अच्छा
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक खूबसूरत मोड़ देखकर छोडऩा अच्छा।।  

पत्रकारिता का नशा : दया की जुबानी
बक्सर : दयाशंकर पत्रकारिता का नाम सुनते ही हंसते हैं। ऐसे घूर कर देखते हैं। जैसे किसी बर्बाद करने वाले को देख रहे हों। लेकिन, घर के संस्कार हाथ जोडऩे को मजबूर कर देते हैं। पत्रकारिता का अनुभव पूछने पर छूटते बोले। अब इज्जत नहीं रही। सामने खड़े होकर लोग कहते हैं। बीस रुपया द, चाय पीया..व, न्यूज छप जाई। शोषण इतना है कि नए लोग जाना नहीं चाहते। रुपया कमाना है तो कंपनी के दफ्तर में जाइए। संपादक जी को प्रणाम करिए। कुछ मिलता रहेगा। लेकिन, जमीन पर काम करने की सोच रहे हैं तो सब बेकार है। यहां काम करने वाले जितने हैं। जिनका कुर्ता टाइट है। सब के सब दलाल हैं। उपर वाला उनसे फोकट में खबर चुस रहा है। वे जिले को चुस रहे हैं।  (मेरी तरफ इशारा कर कहा, एक दो को छोडकर। मुझे लगा आज आबरू निलाम होते-होते बची है)
पत्रकारिता जीवन
बक्सर : दया ने बताया कि 1994-95 में प्रभात खबर के संपर्क में आए। पढ़ाई चल रही थी। घर की जिम्मेवारी थी नहीं। हो गए शुरु, लिखते गए। इस क्रम में निष्पक्ष समाचार ज्योति बनारस व दिल्ली से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक अखबार अक्षर भारत में भी लिखा। उन दोनों से रिश्ता टूट गया। इस बीच प्रभात से भी रिश्ता टूटा, फिर जुटा। कुछ दिन सहारा के लिए लिखा। लेकिन जीवन की नैया डोलने लगी। मां 2003 में चली गई थी, पिता जी 2008 में चले गए। कुल लेदे-कर बीस वर्ष बाद 2014 में पत्रकारिता का बुखार उतर गया। कलम छूटी तो छनौटा हाथ आ गया।

अपनी दुकान पर छनौटा चलाते दया

व्यक्तिगत जीवन
बक्सर : डुमरांव में जन्में दया शंकर प्रसाद का घर झगडु लोहार की गली, चौक रोड में है। इनका जन्म 25.03.1979 को हुआ। पिता श्रीराम प्रसाद की चौथे पुत्र होने का गौरव उन्हें प्राप्त है। 1992 में राज हाई स्कूल से मैट्रिक किया। पीसी कालेज से स्नातक। बचपन से मुख्य धारा में आने का जज्बा था। 1994 में एबीवीपी के नगर मंत्री बने। अब एक बार फिर भाजपा के डुमरांव नगर अध्यक्ष हैं। दयाशंकर फिर पूरे जोश में हैं। अभी तक शादी जो नहीं की। उनका हौसला देख हमने भी कहा –
गम न कर, गर है बादल घनेरा
किसके रोके रुका है सवेरा।।

1 COMMENT

  1. Daya sir ne mass-communation kaha se kiya tha, isko nhi likhe patrkar saheb ne. Raj high school se matric aur P.C. college se graduation krne k bad patrkarita v kiye the ki aise hi sir ne is area me 20 gujaar diye?

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