बक्सर खबर : काल-व्याल मुंह खोले बैठा है। उसके भय, संताप से बचने का सबसे सुगम मार्ग है। भगवान की आराधना। जीव की मुक्ति का भी यही साधन है। परमात्मा का भजन करने वाला मृत्यु के भय और सांसारिक दुख से मुक्ति पा लेता है। जिस प्रकार ट्रेन में यात्रा कर रहे मुसाफिर को अपनी सिट छोड़ते वक्त कोई आसक्ति नहीं होती। उसी तरह भगवान के भक्त को मृत्यु का भय प्रभावित नहीं करता। यह उपदेश प्रात: स्मरणीय जीयर स्वामी जी महाराज ने रविवार को अपनी कथा के दौरान दिए। इन दिनों उनकी कथा आरा जिला के चंदवा में चल रही है। अपने श्री मुख से उन्होंने कहा भगवान की कथा और उनका ध्यान करने वाले को इस सांसारिक बंधन से भी मुक्ति मिल जाती है।
यही प्रश्न सूत जी से शौनक जी ने किया। उन्होंने कहा क्या भागवत की कथा से मानव को मुक्ति मिल जाती है। जवाब मिला मानव ही नहीं, प्रेत बाधा से ग्रसित लोगों को भी इससे मुक्ति मिलती है। उदाहरण स्वरुप उन्होंने गोकर्ण जी की कथा सुनाई। जिसमें शुभद्रा नदी के तट पर बसे उत्तम नगर के निवासी पंडित आत्म देव जी के दो पुत्र धुंधकारी तथा गोकर्ण जी थे। अपने गलत आचरणों के कारण धुंधकारी प्रेत बन गया। दूसरे भाई गोकर्ण जी महाज्ञानी व भगवान भक्त हुए। उनके द्वारा भागवत कथा सुनाने से धुंधकारी को इस संसार से मुक्ति मिल गई। उसी प्रकार भगवत आराधना करने वाले को स्वयं आत्मज्ञान का बोध होने लगता है।