बक्सर खबर : भागवत कोई ग्रंथ नहीं। यह वह शास्त्र है जो जीवन को सुधार देता है। इसके प्रभाव से लोक ही नहीं परलोक का जीवन भी सुधर जाता है। अर्थात जीवन पर्यंत व जीवन के बाद भी। यह बात आज से छह हजार वर्ष पहले सुत जी महाराज ने उत्तर प्रदेश के नैमिषारण्य में कहीं थी। वे बताते हैं यह महापुराण सबके लिए लाभकारी और जीवन की हर उलझन को सुधारने वाला है। इस मैं तो कहता हूं, जीवन को सुधारने के लिए आप किसी मुहुर्त की प्रतिक्षा नहीं करें। जब मौका मिले नेक कार्य में जुट जाना चाहिए। कौन जानता है, किसके पास कितना समय है। और कब तक के लिए। उक्त बातें पूज्य जीयर स्वामी जी महाराज ने मंगलवार को अपने प्रवचन के दौरान कहीं।
आरा के चंदवा में चल रहे चातुर्मास व्रत के दौरान उनके श्री मुख से इन दिनों अमृत वर्षा हो रही है। शास्त्र की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा। शास्त्र वह है जो जीवन को संचालित करने की सीख देता है। जिस तरह सरकार का शासन कानून के द्वारा लोगों को सुपथ पर चलने के लिए बाध्य करता है। उसी तरह शास्त्र व्यक्ति को जीवन जीने के अनुशासन से परिचित कराता है। शास्त्र नहीं रहे तो मनुष्य भी पशु के समान हो जाएगा। भागवत की कथा तो पुरी तरह जीवन शैली, पद्धति, सिद्धांत की सखी देता है। शास्त्र हमें बताता है जीवन में कैसे रहें। माता-पिता, गुरु, अतिथि, भाई-बहन, बड़े छोटे के साथ क्या व्यवहार करें। इसकी सच्ची सीख शास्त्र देते हैं। किसी देश का कानून इसके लिए किसी को बाध्य नहीं कर सकता।
इन सांसारिक ज्ञान के अलावा वैदिक ज्ञान भी इससे मिलता है। जैसे जिस शंख को आप बजाते हैं। उसकी पूजा नहीं की जाती। अर्थात पूजा का और बजाने का शंख अलग-अलग होता है। किसी दूसरे का शंख दूसरा न बजाए। वह अपवित्र हो जाता है। मिट्टी के पात्र का उपयोग सिर्फ एक बार करना चाहिए। भोजन अथवा खाना बनाने के लिए। लेकिन यह नियम घी, दूध जैसे पदार्थ को रखने पर लागू नहीं होता। सोने व चांदी का पात्र जल से धोने पर भी पवित्र माना जाता है। कभी भी जूठा भेजन न करें, न ही किसी को कराएं। ऐसा करने वाले अगले जन्म में श्वान अर्थात कुत्ते का जन्म पाते हैं। पूजा के लिए जिस आसन का उपयोग आप करते हैं। उसे सिर्फ स्वयं उपयोग करें। किसी दूसरे को न दे। शास्त्र के अनुसार आसन, वस्त्र, शैया, कमंडल, संतान व पत्नी सिर्फ स्वयं के लिए पवित्र होते हैं। किसी और के नहीं।