बक्सर खबर : एक ही आबो हवा में पलने बढऩे वाले लोग कैसे अलग-अलग हो जाते हैं। धर्म और संप्रदाय में बंट जाते हैं। लेकिन, परमात्मा मानव में भेद नहीं करते। उनकी नजर में सभी एक हैं। हम बात कर रहे हैं सांप्रदायिक सौहार्द की। बिहार में लोक आस्था के महापर्व छठ में यह सौहार्द देखने को मिलता है। छठ जैसे महापर्व में सबसे प्रमुख प्रसाद माना जाता है महावर। लाल रंग का यह गोल महावर हिन्दू नहीं मुसलमान बनाते हैं। जिसका प्रयोग सभी हिन्दू बगैर किसी भेद भाव के करते हैं। पटना प्रझेत्र में यह महावर डुमरांव में बनती है। चिक टोली एवं कुम्हार टोली में ऐसे दो दर्जन परिवार हैं। जो महावर बनाते हैं। इसे बनाने का काम बहुत की कठिन है। पहले गर्म पानी में गुलाबी रंग घोला जाता है। फिर रुई के गोले बनाए जाते हैं। उन्हें रंगा जाता है। फिर पापड़ की तरह चौड़ा कर धूप में सूखाया जाता है। तब बनकर तैयार होती है महावर। इसकी बिक्री की दर डेढ़ सौ रुपये सैकड़ा है। डुमरांव के खुर्शीद आलम ने बताया कि हम इसे बनाने का काम दशकों से करते चले आ रहे हैं। छठ जैसे पवित्र पर्व को ध्यान में रखते हुए हम साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखते हैं। क्योंकि उपर वाला सबके लिए समान होता है। यह धार्मिक निष्ठा है इस छठ महापर्व की। सिर्फ इतना ही नहीं। इस पर्व में इस्तेमाल किया जाने वाला सूप भी बसफोर बनाते हैं। आम तौर पर छुआ-छूत का भेद करने वाले लोग इनसे दूरी बना कर रखते हैं। लेकिन, जब घर में शादी हो या छठ जैसा महापर्व। तो इनके द्वारा ही बनाए गए सूप में पूजा की विधि संपन्न होती है। यह है भारत वर्ष की गौरवशाली परंपरा।